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________________ अपने बारे में अपना दृष्टिकोण (१) बड़प्पन का मानदण्ड भी टूट जाता है। थोथा घमंड भी टूट जाता है। कहां चले, कैसे चले, फिर फर्क ही क्या पड़े ? आदमी करोड़पति किसलिए बने ? इसलिए बनता है कि उसे सारी सुविधाएं मिल जाती हैं। वह इतना परावलम्बी बन जाता है कि बिना नौकर के उसका आना-जाना, खाना- -पीना सब बन्द हो जाता है। नौकर की उपयोगिता को वह स्वीकार करता है, पर उसकी आवश्यकताओं को नकारता जाता है। नौकर बीमार होता है तो वह सोचता है, अगले का भाग्य, अगला जाने, काम के समय सारा काम नौकर से होता है, पर समय पर उसे अंगूठा दिखा देता है । क्या यह परावलम्बन अमरबेल से कम है ? बम्बई की एक घटना है । आफिस में तार आया पड़ा था अधिकारी के टेबल पर । अधिकारी आया, आते ही जल्दबाजी में तार पढ़ा तो उसमें लिखा था, तुम्हारी 'मां मर गई है, जल्दी चले आओ।' उसने और कुछ नहीं देखा । उसकी मां भी बूढ़ी थी । उसने सोचा- मेरी मां मर गई । वह उदास हो गया, गमगीन हो गया, बड़ा चिंतित था । जाने की तैयार कर रहा था । इतने में एक कर्मचारी आकर बोला- 'सर ! मेरी मां मर गई तार आया है । मुझे छुट्टी चाहिए। तार मैं आपकी टेबल पर रख गया था।' अधिकारी से सुना, वह राजी हो गया । मन की विषमता भी समाप्त, जाने की तैयारी भी समाप्त । अधिकारी ने कहा-बूढ़े मरते ही रहते हैं । आज मां मर गई, कल और कोई मर सकता है। आए दिन छुट्टी ही छुट्टी ! ऐसी डांट दी । बेचारे की हिम्मत ही नहीं हुई कि दूसरी बार कह सके, मुझे छुट्टी दो । / यह क्या है ? जिस आदमी के सहारे सारी सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं, उस व्यक्ति में कठिनाई आती है तो आंखें बन्द हो जाती हैं । ऐसी अंधापन आता है कि कुछ दिखाई ही नहीं देता। इस व्यक्तिवादी मनोवृत्ति ने ही समाजवादी प्रणाली को प्रेरित किया है । समाजवाद का विकास अकारण नहीं हुआ है। उसके पीछे एक प्रेरणा है। हर घटना के पीछे एक प्रेरणा होती है । व्यक्तिवादी दृष्टिकोण इतना सीमातीत हो गया, स्वार्थ इतना सघन हो गया कि दूसरे व्यक्ति की कठिनाइयों, सुविधाओं और असुविधाओं की ओर ध्यान देने का भी समय बचा नहीं । इस परिस्थिति ने ही एक प्रतिक्रिया पैदा की, एक आग पैदा की, एक चिनगारी पैदा की और एक नई बात सामने आई । परावलंबन की कहानी वैयक्तिकता के साथ जुड़ी हुई है । आज व्यक्ति इतना परावलम्बी हो गया कि उसने स्वावलम्बन को बिलकुल भुला डाला है । लगता तो यह है, यदि दूसरा सामने काम करने वाला मिलता हो तो शायद कुछ लोग तो हाथ हिलाना भी पसंद नहीं करेंगे। मुंह में कौर डालना भी नहीं Jain Education International ५३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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