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कैसे सोचें ?
चख लिया था। उसे कोई भी दूसरा स्वाद अच्छा नहीं लग रहा था। न शासन का, न वैभव का, न राज्य का, न सत्ता का। उसे कोई भी स्वाद प्रभावित नहीं कर रहा था।
हमारी स्वतंत्रता का सर्वोपरि मूल्य होता है। व्यक्ति को अस्वीकार करने का अर्थ होता है कि हम स्वतंत्रता को अस्वीकार कर रहे हैं। वर्तमान की शासन प्रणाली, वर्तमान की जीवन प्रणाली और वर्तमान की नागरिक पद्धति को देखता हूं तो ऐसा लगता है कि धीरे-धीरे व्यक्ति का व्यक्तित्व और उसकी स्वतंत्रता समाप्त होती जा रही है। व्यक्ति एक यंत्र का पुर्जा बनता जा रहा है। कितनी परतंत्रता ! व्यक्ति घर में एक खिड़की निकालने के लिए स्वतंत्र नहीं है। कारपोरेशन की स्वीकृति चाहिए। यह तो ठीक है कि पड़ोसी को कठिनाई पैदा हो, ऐसी बात तो नहीं होनी चाहिए, वहां तो आपत्ति हो सकती है, पर किसी को कोई आपत्ति न हो, फिर भी वह बात मान्य न हो, यह विडंबना है। इतना कानूनों से जीवन जकड़ गया है कि स्वतंत्रता तो शायद ढूंढ़ने पर भी न मिले। यह बहुत विचित्र स्थिति जीवन की होती जा रही है।
हमारे वैयक्तिक जीवन की दूसरी फलश्रुति है-स्वावलंबन । स्वावलंबन कहां है ? इतना परावलंबन होता है कि आदमी दूसरे पर निर्भर होता चला जा रहा है। आपने अमरबेल का नाम सुना होगा। नाम तो बहुत सुन्दर, पर बड़ी खतरनाक बेल होती है। जिस पौधे पर चढ़ जाती है, उसकी तो अन्त ही समझिए। अपने पैरों पर खड़ी नहीं होती। दूसरे का आलंबन ढूंढ़ती है, दूसरों के सहारे खड़ी होती है। बड़ी अजीब प्रकृति है। जिसके सहारे खड़ी होती है उसे खाना शुरू कर देती है। कहा जाता है कि अमरबेल एक किलोमीटर तक अपना पैर फैला देती है। वह दूसरों पर फैलती है और दूसरों को समाप्त करती चली जाती है। परावलंबन का सबसे अच्छा उदाहरण है-अमरबेल । आदमी भी कम परावलम्बी नहीं है, अमरबेल से कम खतरनाक नहीं है। वह भी दूसरों के कंधों पर अपना वैभव, अपनी शान-एश्वर्य चलाता है और उनको चट करता चला जाता है।
बड़े से बड़ा उद्योगपति, बड़े से बड़ा धनपति नौकर रखता है। उसके आधार पर उसका सारा ठाट-बाट चलता है, बड़प्पन चलता है। नौकर-चाकर न हो, आदमी काम करने वाला न हो तो बड़प्पन की सारी मर्यादा टूट जाए। फर्क क्या पड़े ? कोई फर्क नहीं पड़ता। बड़प्पन तब चलता है जब सामने १०-२० काम करने वाले हों। तब लगता है कि कुछ है। जैसे एक मजदूर को सारा काम अपने हाथ से करना पड़ता है, वैसे ही यदि एक धनपति को भी सारा काम अपने हाथ से करना पड़े तो अहंकार भी टूट जाता है और
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