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अपने बारे में अपना दृष्टिकोण ( १ )
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ने मेरे सारे प्रयत्न को धूल में मिला डाला । मैंने कितना श्रम किया कितना खर्च किया । आप मुझे एक वर्ष में जितना वेतन देते हैं वह तो मैंने एक ही दिन में गंवा दिया। मैं तो पूरा खाली हो गया । मेरा इतना सारा श्रम तो बेकार गया । केवल एक जबान आपको याद रह गई, वह आपके सामने आ गई। मेरा सारा श्रम ऐसे ही चला गया। मुझे तो आपको प्रमाण देना था कि जीभ कितनी मीठी होती है और कितनी कड़वी होती है।' बादशाह बिलकुल मौन और शांत हो गया ।
जीभ मीठी होती है और जीभ कड़वी होती है। हमारे जीवन की यही स्थिति है। हमारे जीवन का यही चित्र है जो हमारे सामने प्रस्तुत होता है । स्वतंत्रता सबसे मीठी होती है। स्वतंत्रता के साथ यदि रूखी रोटी भी मिलती है तो बहुत मीठी होती है और परतंत्रता के साथ बीरबल का पूरा आतिथ्य मिलता है तो भी अत्यन्त कड़वा और जहरीला होता है। हमें वास्तव में मिठास का अनुभव ही कहां है ।
मैंने एक छोटे शिविरार्थी से कहा- तुम रोटी को स्वाद के लिए व्यंजन के साथ मत खाओ। फिर देखों कि गेहूं कितना मीठा होता है । मुझे लगता है, नमक-मिर्च मसालों के साथ गेहूं की रोटी खाने वालों को गेहूं के स्वाद का बिलकुल ही पता नहीं लगता । हमारे तो स्वाद ही बस दो हैं- नमक या चीनी । इसके सिवाय न गेहूं के स्वाद का पता, न शाक-सब्जियों के स्वाद का पता । तोरु का, खीरे का स्वाद कैसा होता है, आपको पता कैसे चले ? उस पर तो नमक और मिर्च हावी जो जाते हैं ।
स्वतंत्रता का अपना इतना बड़ा स्वाद होता है किन्तु उस पर स्वतंत्रता के मसाले इतने हावी हो जाते हैं कि हमें स्वतंत्रता के स्वाद का पता ही नहीं चलता, अनुभव ही नहीं होता । जिस व्यक्ति ने एक बार भी गेहूं की कोरी रोटी खाई है उसे पता लग जाएगा कि गेहूं कितना मीठा होता है। जिस व्यक्ति ने एक बार भी स्वतंत्रता का अनुभव किया है उस व्यक्ति को पता लग जाएगा कि स्वतंत्रता का स्वाद कितना होता है ।
राणा प्रताप पहाड़ों में घूमते रहे, बड़े-बड़े स्वार्थों को ठुकराते रहे । क्यों ठुकराते रहे ? क्यों इतने कष्टों को झेलते रहे ? क्यों इतनी बड़ी परिस्थितियों को सहन करते रहे ? जहां राजकुमार को खाने के लिए रोटी नही, रोटी के लिए बेचारा राजकुमार तरसता रहा। भूखा था, राजकुमार के लिए रोटी बनाई जा रही थी । रोटी बना कर रखी, इतने में बिलाव आया, झपट कर ले गया, वह देखता रह गया, तरसता रह गया । भला एक राजकुमार इस अवस्था में रहे, आखिर क्यों ? प्रताप ने स्वतंत्रता का स्वाद
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