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________________ कैसे सोचें ? को सराहा। कितनी बार कहा-कैसा आतिथ्य किया है ! कितना बढ़िया भोजन बनाया है। भोजन से निवृत्त होकर बेगम उठी, जाने लगी। बहुत प्रसन्न थी। जाते-जाते बीरबल ने अपने नौकर से कहा-'दखो आंगन को बहुत अच्छी तरफ साफ करना है, यहां तुर्कनी ने भोजन किया है, खूब साफ करना।' बेगम ने सुना, उसका खाया-पीया सारा जहर हो गया। अब तक तो भोजन बहुत मीठा था और अब कड़वा हो गया, इतना जहर बन गया कि दिमाग चकराने लगा। भोजन इतना जल्दी हजम हो गया कि पता ही नहीं चला। भोजन समाप्त हो गया। आई। बादशाह ने पूछा, कैसा आतिथ्य किया ? 'बेगम बोली, आपने मुझे कहां भेज दिया ?' 'क्या हुआ ?' 'खाया-पीया सारा हराम हो गया। सारा जहर बन गया।' 'क्या भोजन ठीक नहीं कराया ? 'नहीं भोजन तो अच्छा कराया।' तो फिर क्या हुआ ?' ‘जहांपनाह ! खाने के बाद आने लगी तो बीरबल ने ऐसी बात कही-'भला, आपका सेवक होकर ऐसी बात कह सकता है! धूर्त आदमी, एक दुश्मन भी ऐसी बात नहीं कह सकता। मेरा इतना अपमान किया।' उसने सारी बात बादशाह को सुनाई। बादशाह की भृकुटी भी तन गई। वह गुस्से में आया। सभा में आकर बैठ गया। बीरबल आया तो सामने भी नहीं देखा। बीरबल ने देखा, काम तो बन गया। आंखें, भृकुटी तनी हुई थीं। बीरबल आकर बैठ गया अपने स्थान पर । कुछ देर बाद बादशाह का गुस्सा कुछ शांत हुआ, पारा थोड़ा नीचे उतरा, बादशाह बोला-बीरबल ! तुमने कितना बड़ा अपमान किया है ? बीरबल बोला-मैंने तो कोई अपराध नहीं किया है। 'तुमने क्या कहा ?' 'कुछ भी नहीं।' 'तुमने भोजन करने के बाद बेगम साहिबा के लिए कहा था-'तुर्कनी बैठी थी, जगह रगड़ कर साफ करना।' थोड़ा स्मृति पर जोर डालते हुए-'हां यह तो मैंने कहा था।' 'क्यों कहा ?' 'आपको प्रमाण देना था।' 'अरे ! कैसा प्रमाण ?' 'यही कि जबान का क्या मीठा और क्या खारा ! देखिए मेरी इस जीभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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