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अपने बारे में अपना दृष्टिकोण (१)
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मीठे के बारे में जो प्रश्न पूछा जाए, एक उत्तर नहीं हो सकता। कोई कुछ बताता है, कोई कुछ बताता है। बीरबल बोला नहीं, चुप रहा । बादशाह को तो उससे पूछना था। सब बोले, संतोष नहीं हुआ, आखिर बादशाह को नाम लेकर पूछना पड़ा-बीरबल ! तुम भी बोलो।' वह बोला-महाराज ! सब बोल रहे हैं, मेरे बोलने की क्या जरूरत है ? 'नहीं, तुम बताओ, सबसे मीठी क्या होती है ?' बीरबल बोला--'सबसे मीठी होती है-जबान ।' बीरबल का उत्तर तो बड़ा बेतुका होता था। बादशाह ने कहा-तुम भी बड़ी उटपटांग बातें करते हो। जबान का क्या मीठा ? जबान कैसी मीठी ? गलत है तुम्हारी बात। या तो प्रमाणित करो या तुम्हारी बात गलत साबित होगी। उसने कहा, प्रमाणित करूंगा, आज नहीं अवसर आने पर करूंगा।
कुछ दिनों बाद बीरबल ने कहा-जहांपनाह ! मैं बेगम साहिबा को अपने घर भोजन के लिए निमन्त्रित करना चाहता हूं। बादशाह बोला-ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा। बीरबल ने भोजन की तैयारी की। भोजन के लिए बेगम गई। इतने बढ़िया भोजन बनाए कि बेगम साहिबा खाकर आश्चर्य में पड़ गई कि इतने बढ़िया भोजन तो मेरे यहां भी तैयार नहीं होते। इतनी अच्छी तैयारी थी। न जाने कितनी बार प्रशंसा की होगी।
यह मनुष्य का स्वभाव है। उसमें खाने की कोई ऐसी आसक्ति है कि बढ़िया चीज सामने आती है तो खाता है कम, और प्रशंसा करता है ज्यादा। खाते समय भी प्रशंसा करता है। बाद में भी प्रशंसा करता है। चार प्रकार की चर्चाएं होती हैं-आहार की चर्चा, काम-वासना की चर्चा, देश संबंधी चर्चा और राज्य संबंधी चर्चा । जीवन का सबसे बड़ा भाग इन चर्चाओं में बीतता है। जो लोग यह कहते हैं कि समय नहीं मिलता, उनके जीवन का विश्लेषण किया जाए तो पता चलेगा कि उनके जीवन का बहुत सारा समय तो इन चार प्रकार की चर्चाओं-कथाओं में बीत जाता है। फिर बेचारे के पास समय बचता कहां है ? कहां समय मिले ? किसी से कहा जाए कि ध्यान करो तो उत्तर मिलता है, मुझे फुरसत नहीं है। इतना व्यस्त हूं, कर नहीं पाता और भी कोई अच्छा काम करने के लिए कहा जाए तो उत्तर मिलेगा कि समय नहीं है। न जाने कितने लोग सारे दिन राज्य की बात करते रहते हैं कि हमारा मंत्री अच्छा नहीं, हमारा प्रधानमंत्री अच्छा नहीं, हमारी नीतियां गलत हैं, यह हो रहा है, वह हो रहा है। आदमी इतनी चिंता करता है, मानो सारे राष्ट्र का भार उसी के कंधों पर है और सारे दायित्व उसी को निभाने हैं। समय तो हमारा बीत जाता है इन निकम्मे कामों में फिर समय बचे कहां से।
बेगम ने भी भोजन की बड़ी प्रशंसा की। न जाने कितनी बार भोजन
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