SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कैसे सोचें ? शक्ति भीतर में काम कर रही है और हम आदमी से कहते हैं, लड़ो मत । हमने चूल्हा सुलगा दिया, ईंधन जला दिया और कहते हैं कि लपट ! ऊपर मत उठो। गर्मी मत दो। अरे ! तुमने अपने हाथ से चूल्हा जलाया, ईंधन डाला, आग सुलग उठी, भभक उठी आग, और कहते हो कि गर्मी मत दो, यह कैसे संभव होगा। आंच एक परिणाम है, ताप एक परिणाम है । उस परिणाम को कैसे मिटाया जा सकता है ? आग हो और ताप न हो यह कैसे संभव है ? यदि ताप को मिटाना है तो आग को बुझाना होगा। आग को बुझाना नहीं चाहते और ताप से बचना चाहते हैं - यह विपर्यास है । आदमी ने कुछ ऐसे उपाय भी किए हैं पर परिणाम को मिटाने के सारे उपाय तात्कालिक होते है, वे स्थायी नहीं होते और बहुत फलप्रद भी नहीं होते। अपनी सारी समस्याओं और उलझनों पर हम ध्यान दें तो निष्कर्ष यही आएगा कि हम केवल परिणाम की परिक्रमा कर रहे हैं। यह परिक्रमा इतनी बड़ी परिक्रमा हो जाती है कि जिसका कभी अन्त नहीं होता और समस्या का कोई समाधान भी नहीं होता। हम मूल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। ऐसी भ्रांति होती है कि मूल सामने है पर मूल पर ध्यान नहीं जाता । ३८ एक आदमी अपनी पत्नी को लेकर चुनाव अधिकारी के पास गया और शिकायत की कि मेरी पत्नी का नाम मतदाता की सूची में नहीं है। अधिकारी ने देखा और कहा इसका नाम तो मृतक की सूची में है । पत्नी बोली- मैं जीवित खड़ी हूं। मृतक की सूची में कैसे ? पति बोला- तुम बेवकूफ हो, क्या इतना बड़ा अधिकारी झूठ बोलेगा । बड़ी विचित्र परिस्थिति होती है । मूल जीवित खड़ा है, हमारे सामने उपस्थित है, पर हम अधिकारी की बात पर विश्वास करेंगे, जीवित आदमी की बात पर विश्वास नहीं करेंगे। हमारी सारी वृत्तियां जो जीवित हैं-लड़ाने वाली वृत्ति जीवित है, गुस्सा लाने वाली, अहंकार पैदा करने वाली वृत्ति व संग्रह करने वाली वृत्ति जीवित है, सारी बुराइयों को जन्म देने वाली हमारी वृत्तियां जीवित हैं, हम उन पर विश्वास नहीं करेंगे, अधिकारी पर विश्वास करेंगे कि क्या इतना बड़ा अधिकारी झूठ थोड़े ही बोलता है ? हम उस धर्म-गुरु की बात में विश्वास करेंगे, जो यह कहता है बस, तुम मेरी शरण में आ जाओ, सब कुछ मिट जाएगा। उस पर भरोसा करेंगे, अपनी जीवित वृत्तियों पर भरोसा नहीं करेंगे। हमारे लिए समस्या का समाधान करना है तो एक ही उपाय सामने है कि हम परिणाम पर ज्यादा भरोसा न करें । न हम परिणाम को ज्यादा चाहें और न परिणाम को मिटाना चाहें । वृत्तियों पर ध्यान केन्द्रित करें और उनके संदर्भ में प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें कि कौन-सी वृत्ति किस प्रवृत्ति को जन्म दे रही है । परिणाम की चिंता अलग से करने की जरूरत नहीं। वह तो अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy