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कैसे सोचें ?
जा सकता है ? क्या अपरिग्रह को साधा जा सकता है ? लोग कहते हैं-ये सब साधे जा सकते हैं। हमने संकल्प कर लिया है कि हिंसा नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे, चोरी नहीं करेंगे, अब्रह्मचर्य का सेवन नहीं करेंगे, परिग्रह नहीं रखेंगे।
प्रश्न है-संकल्प ले लिया, पर यह सिद्ध हो गया क्या ? यदि संकल्प लेने मात्र से सारी बातें सिद्ध होती तो दुनिया में सबसे बड़ा शब्द का चमत्कार होता कि जो भी कहा, सिद्ध हो गया। हर कोई आदमी कहेगा कि मैं गरीबी नहीं चाहता। गरीबी को मिटा दूंगा-बात सिद्ध हो जाती। यह जो बुराई है इसे मिटा दूंगा। एक जादू का डंडा जैसा हो जाता। पर केवल शब्द के उच्चारण से कोई काम सधता नहीं। हमारे पास कोई ऐसा चिन्तामणि रत्न नहीं है कि जो भी मुंह से कहा और सामने प्रस्तुत हो जाए। कहां है चिन्तामणि ? कहां है कल्पवृक्ष और कहां है कामधेनु ? जो मन में कल्पना की, जो कामना की, चिन्ता की और वह सिद्ध हो गया। ऐसा तो कुछ भी नहीं है। फिर मात्र एक संकल्प के स्वीकार से, एक शब्द के उच्चारण से वह बात कैसे बन जाएगी? इस पर गंभीर चिन्तन हुआ। तीर्थंकारों ने, आचार्यों ने एक मार्ग बताया कि गुप्ति की साधना करो, व्रत सिद्ध होगा। मनो गुप्ति, वचन गुप्ति और काया गुप्ति-इन गुप्तियों की साधना से व्रत सिद्ध होगा। मन स्थिर है, अहिंसा सिद्ध हो जाएगी। मन निर्मल है, स्थिर है तो ब्रह्मचर्य सिद्ध हो जाएगा। मन स्थिर है, निर्मल है तो अपरिग्रह सध जाएगा। पर जब तक मन उतना ही चंचल है, मन बन्दर बना हुआ भटक रहा है, दौड़ लगा रहा है, पदार्थ के प्रति दौड़ता है, व्यक्ति के प्रति दौड़ता है, घटनाओं के प्रति दौड़ता है, उतनी ही चंचलता, उतना ही विक्षेप और उतना ही आसक्तिभाव, सब चलता है तो क्या अहिंसा सध जाएगी? ब्रह्मचर्य सध जाएगा ? साधु बनने मात्र से सब कुछ सध जाएगा? अगर ऐसा सुगम उपाय मिले तो मैं तो चाहूंगा कि सारी दुनिया ही साधु बना लिया जाए। किसी को असंन्यासी रहने की आवश्यकता ही नहीं है। एक शब्द का उच्चारण किया और बन गया। पर अगर ऐसा होगा तो 'पुनर्मूषको भव' वाली बात आ जाएगी। जो साधक अपनी साधना के परिपाक के बिना आगे बढ़ जाता है, उसे पीछे लौटने की बात भी करनी पड़ती है।
एक चूहा था। उसे बिल्ली का बहुत भय सताता था। एक बार एक ऋषि ने उसे वरदान दिया और वह बिल्ली बन गया। बिल्ली का भय मिटा और अब कुत्ते का भय सताने लगा। ऋषि ने उसे कुत्ता बना दिया। कुछ दिन बीते। ऋषि ने पूछा-अभय हो गए ? वह बोला-अभय कैसे ? अब शेर से डर लगता है। ऋषि ने उसे शेर बना दिया। अब भी भय नहीं मिटा। उसने एक ऋषि से कहा-अब मुझे किसी भी पशु से भय नहीं लगता, केवल शिकारी से डर लगता है। ऋषि ने पूछा-अब क्या चाहते हो ? मनुष्य बना दूं ? उसने
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