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________________ ३२ कैसे सोचें ? धोखा देता है, ये सारे चिंतन, ये सारे मनोभाव कहां उभरते हैं ? एक ओर प्रियता खींच रही है कि यह मेरा परिवार, मेरा पत्र मेरी पत्नी सुखी रहे। मेरा घर बड़ा बने, मेरे पास अपार धन हो, पदार्थ की कमी न रहे। जहां प्रियता होगी वहां अप्रियता निश्चित ही होगी, कहने की जरूरत नहीं। एक आदमी बाजार में जाता है और पूरी छानबीन करके शुद्ध घी अपने घर में ले जाना चाहता है, क्योंकि वह अपने परिवार को मिलावटी चीजें खिलाना नहीं चाहता। और वही व्यक्ति दवा बेचता है तो मिलावटी दवा बेच देता है दूसरों को, क्योंकि उसमें अप्रियता है, प्रियता नहीं है। इसलिए वहां संकोच भी नहीं होता कि मैं क्या कर रहा हूं। इस प्रियता और अप्रियता की अनुभूति ने विचारों को इतना प्रभावित किया है कि इस आधार पर सारी बुराइयां और कार्मिक बुराइयां पनप रही हैं। समत्व का कोण विकसित हुए बिना विचारों की जो मलिनता है, विचारों का जो द्वन्द्व है उसे समाप्त नहीं किया जा सकता। ध्यान का एक काम होता है प्रियता और अप्रियता के संवेदन से परे हटकर समता के अनुभव को जगा देना। जिस ध्यान के द्वारा समता का अनुभव नहीं जागता वह वास्तव में ध्यान नहीं हो सकता। ध्यान कोरी प्रीति नहीं है, ध्यान कोरा विश्राम नहीं है, ध्यान कोरा आराम नहीं है। बस, निठल्ले बैठ गये, आंखें बंद कर लीं, कोई काम नहीं, कोई चिंता नहीं। दस दिन तक मकान (प्रज्ञा-प्रदीप) से बाहर जाना नहीं, बैठ गए, विश्राम मिला। पूछने पर कहते हैं, ध्यान बड़ा अच्छा लगा। क्यों लगा ? इसलिए कि इतना आराम मिला। अरे, परिणाम क्या हुआ ? निष्पत्ति क्या हुई ? वे लोग मकान से बाहर न जाना, विश्राम मिलना, इसी को ध्यान की निष्पत्ति मान लेते हैं। जब वे इस सीमा से बाहर जाते हैं तब ज्यों के त्यों, जैसे थे वैसे, वही दुनिया और वही नटखटपन । यदि यही ध्यान है तो ध्यान सीमाप्रतिबद्ध ध्यान हो गया, देशप्रतिबद्ध ध्यान हो गया। नींद में नटखट बच्चा भी शांत रहता है। थोड़े बहुत हाथ-पैर पछाड़ लेता होगा। फिर भी शांत रहता है। नींद में आदमी सोता है तो कब लड़ाई करता है ? नींद में हर आदमी अच्छा हो जाता है, बुरा आदमी नींद लेते समय भीतर में तो बुरा ही रहता है पर ऊपर से अच्छा हो जाता है। बुरे स्वप्न, बुरी कल्पनाएं, बुरे चिंतन चलते रहते हैं। चेतन मन थोड़ा सो जाता है तो अचेतन मन तो खुलकर खेलने लग जाता है। पर बाहर से फिर भी अच्छा लगता है। खोट की सीमा में सोया रहता है तो बहुत सारी बुराइयां नहीं करता, न झूठ बोलता है, न धोखा देता है, न गालियां देता है, कुछ भी नहीं करता। वह तो ठीक भी रहता है मूर्छा में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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