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________________ कैसे सोचें ? (३) करें। हम सहारा देंगे, आलंवन देंगे, निमित्त बनेंगे। थोड़ा-सा धक्का दे देंगे। मोटर का इन्जिन नहीं चलता, तब पांच-दस आदमी मिलते हैं और एक बार कार को थोड़ा-सा धक्का दे देते हैं। बात यहां तक तो ठीक है, पर रोहतक जाना है, क्या सारे रास्ते धक्के देते जाएंगे ? यह कभी सम्भव नहीं होगा। आखिर तो इन्जिन की अपनी शक्ति होनी चाहिए, स्थिति होनी चाहिए, धक्का कभी-कभी दिया जाता है, सदा नहीं दिया जाता। यह अभय की खोज हमारे जीवन की महत्त्वपूर्ण खोज है। हम अभय बनें, डरना छोड़ें। जिस व्यक्ति ने अभय का पाठ नहीं पढ़ा, उसका विचार सही नहीं होगा। उसका विचार भय से प्रभावित विचार होगा। दूसरी बात है, समता में से जो विचार स्फूर्त होता है यह विचार संतुलित होता है। जहां हीनता और अहंकार की ग्रन्थि आ जाती है वहां विचार अस्वस्थ बन जाता है, विकृत बन जाता है। एक बड़ी कसौटी है स्वस्थ विचार के परीक्षण की कि विचार समता की दृष्टि से किया गया है या नहीं किया गया है। मुझे लगता है, आदमी का जीवन प्राय: दो प्रकार के संवेदनों में ही बीतता है। प्रियता का संवेदन और अप्रियता का संवेदन । विचार की पृष्ठभूमि का यदि हम सूक्ष्म विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि कहीं न कहीं सूक्ष्म बात छिपी हुई है-प्रियता छिपी हुई है या अप्रियता छिपी हुई है। हर बात प्रियता से प्रभावित होती है या अप्रियता से प्रभावित होती है। ऐसा विचार जिसके साथ, जिसकी पृष्ठभूमि में, प्रियता और अप्रियता दोनों न हों, भाग्य से ही शायद वर्षों में आता होगा। हम सोचें, वही बात एक प्रिय व्यक्ति कहता है, बहुत अच्छी लगती है और सारा विचार बदल जाता है और वही बात उन्हीं शब्दों में कोई अप्रिय व्यक्ति कहता है तो मन में घृणा और तिरस्कार का भाव जाग जाता है। यह क्यों ? हम विचार की स्वस्थता पर विचार कर रहे हैं। बहुत ध्यान से देखें तो यह बात छिपी हुई नहीं रहेगी कि जिस विचार को हम स्वस्थ मानते हैं वह विचार भी बहुत अस्वस्थ हो जाता है-इस पक्षपात के कारण और प्रियता और अप्रियता की अनुभूति से जुड़े होने के कारण। हमारे जीवन में अनेक घटनाएं घटित होती हैं। उन घटनाओं के पीछे दो सबसे बड़े कारण होते हैं-राग और द्वेष, प्रियता और अप्रियता। या तो राग के कारण हम अनेक प्रवृत्तियां करते हैं या द्वेष के कारण अनेक प्रवृत्तियां करते हैं। रुचि और अरुचि, प्रियता और अप्रियता, राग और द्वेष, आकर्षण और विकर्षण-ये हमें बांट लेते हैं। हमारा ऐसा कोई धरातल नहीं जहां हम इनसे हटकर सोच सकें, विचार कर सकें। आदमी बुराइयां करता है, अप्रामाणिक व्यवहार करता है, दूसरों को 'सारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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