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________________ २८ कैसे सोचें ? हैं ? कभी सम्भव नहीं। स्वस्थ चिन्तन के लिए पहली शर्त है-अभय होना। अभय मानस, अभय मस्तिष्क, भयमुक्त सारा वातावरण। इसी परिवेश में स्वस्थ चिंतन का प्रादुर्भाव होगा, स्वस्थ चिन्तन निकलेगा। डरा हुआ आदमी कभी ठीक बात नहीं सोच सकता। बड़ा आश्चर्य होता है मुझे, आदमी डरता क्यों है ? वह डरता है अपने ही गलत चिन्तन के कारण। व्यक्तित्व का निर्माण होता है विचार से। और उसने कुछ ऐसे विचार, कुछ ऐसी मान्यताएं और अवधारणाएं बना लीं कि एक स्थिति के आते ही तत्काल सारा वातावरण भय से प्रताड़ित हो जाता है। क्यों ? जिस व्यक्ति ने थोड़ा-सा अध्यात्म को समझा है, जिस व्यक्ति ने धर्म के लेश को भी समझा है, जिस व्यक्ति के जीवन पर या झुलसते हुए जीवन पर धर्म की एक फुहार भी गिरी है तो उसका पहला परिणाम होगा-अभय । जो अभय नहीं होता, वह धार्मिक नहीं होता, आध्यात्मिक नहीं होता। जो अभय नहीं होता, वह स्वस्थ नहीं होता। बीमारियों की जड़ है-भय । कलह की जड़ है-भय और अन-आध्यात्मिकता की जड़ है-भय । सबकी जड़ है-भय । जब तक मन से भय नहीं निकलता तब तक आदमी क्या आत्मा का अनुभव कर सकता है ? लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं आत्मा और परमात्मा के बारे में। अरे ! कहां आत्मा और कहां परमात्मा ! इन अतीन्द्रिय और सूक्ष्म तत्त्वों के बारे में चर्चा करने का अधिकार तुम्हें कहां है ! मन से भय ही नहीं निकला-शरीर का भय, बीमारी का भय, बुढ़ापे का भय, मौत का भय, पदार्थ के वियोग का भय, वस्तु के चले जाने का भय, प्रिय व्यक्ति के चले जाने का भय-सारे भय तो दिमाग पर सवार हैं, चारों ओर चेतना की शक्तियां भयाक्रांत हो रही हैं और चर्चा करना चाहते हो आत्मा की और परमात्मा की ? भय में से कहीं आत्मा निकलेगी ? नहीं। भय में से तो भूत निकलेगा, आत्मा-परमात्मा नहीं निकलेगा। भय का काम है भूत पैदा करना। और भूत होता ही क्या है ? कोई होता होगा, पर अधिकांश लोगों को जो भूत दीखता है वह तो भयकारी भूत दीखता है। भय ही भूत बनकर आता है। एक ऐसा मानसिक प्रक्षेपण होता है कि जैसे ही डर लगना शुरू होता है तो भूत की आकृति सामने उभर आती है। अपना मानसिक प्रक्षेपण, अपना मानसिक प्रतिबिम्ब और अपने भयभीत मन की प्रतिकृति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं आता। क्या भय से ग्रस्त मानस कभी सूक्ष्म चर्चा का अधिकारी होगा ? भगवान् महावीर ने एक सूक्ष्म बात कही थी। उन्होंने अहिंसा को ही धर्म नहीं बतलाया। लोग तो यही कहते हैं कि उन्होंने अहिंसा को ही धर्म बतलाया। पर मैं जो समझ पाया हूं उसके आधार पर यह कह सकता हूं कि भगवान् महावीर ने जितना बल अभय पर दिया उतना बल अहिंसा पर नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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