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________________ कैसे सोचें ? वहां केवल आत्मा का अनुभव शेष बचता है, बाकी स्मृतियां लुप्त हो जाती हैं। वह एक परम अवस्था है। उसकी चर्चा शब्दों में नहीं हो सकती। यह अनुभव का विषय है। बुद्धि की सीमा का जो विषय है वह शब्दों द्वारा प्रतिपादित किया जा सकता है। जो बुद्धि से परे का संसार है, वह शब्दातीत होता है। उसके बारे में कहा जाए तो भी कुछ नहीं बनता और न कहें तो भी मन नहीं मानता। कहने और न कहने की दोनों स्थितियों में आदमी उलझा रहता है। किन्तु हमारा संसार बुद्धि का संसार और विचार का संसार है, वहां ये बातें होती हैं, विरोधाभास होते हैं। जितना विरोधाभास वैचारिक जगत् में होता है उतना कहीं नहीं होता। एक आदमी आज एक बात कहता है वही आदमी कल दूसरी बात कह देता है। ___ चर्चिल ने कहा था कि कुशल राजनीतिज्ञ वह होता है जो सुबह एक बात कहता है और शाम को उसका खण्डन कर देता है इस चतुराई के साथ कि सुबह मैंने कहा था वह भी ठीक था और अब जो कह रहा हूं वह भी ठीक विचार के क्षेत्र में कभी विरोधाभासों को टाला नहीं जा सकता। तर्कशास्त्र में स्थान-स्थान पर कहा जाता है-यहां अमुक बात का विरोधाभास है, यहां अमुक बात का विरोधाभास है। अरे, जब शास्त्र ही तर्क का है, तर्कशास्त्र है, जहां विचार ही कर रहे हो तो विरोधाभास नहीं आएगा तो और क्या आएगा। गर्भवती मां ने छोटे मुन्ने से पूछा-अरे तुम क्या चाहते हो, मुन्ना या मुन्नी? छोटा बच्चा था, बोला-मां ! तुम्हे कष्ट न हो तो छोटा-सा पिल्ला चाहिए, न मुन्ना, न मुन्नी। कहां से आएगा ? जो है नहीं वह कहां से आयेगा। जो होगा, वही आएगा। विचार में और क्या आएगा ? विचार का काम है, संगति और विसंगति दोनों पैदा करना। विचार का काम है विरोध और अविरोध दोनों पैदा करना। कोई भी विचार, बुद्धि या तर्क ऐसा नहीं हो सकता जो केवल अविरोध पैदा करे, केवल संगति या सामजस्य पैदा करे। द्वन्द्व ही पैदा होगा विचार के द्वारा, क्योंकि वहां गतिशीलता है। यह नहीं हो सकता कि चलने वाला चलता ही रहे, लड़खड़ाये नहीं। जो चलता है वह लड़खड़ाता है। घोड़े पर चढ़ता है वह गिरता भी है। चलना और लड़खड़ाना, चढ़ना और गिरना-दोनों साथ जुड़े हुए हैं। विचार की इस द्वन्द्वात्मक दुनिया में हम एक बात की अपेक्षा रखें कि यही होगा, वह नहीं होगा, यह होना चाहिए, वह नहीं होना चाहिए, तो यह हमारी भ्रांति होगी, कोई तथ्य नहीं होगा। यह विचार की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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