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कैसे सोचें ? (३)
__ आज मौसम सुहावना हो गया। मंद-मंद वर्षा, हल्की फुहारें। भयंकर गर्मी के बाद एक फुहार भी आदमी को आनन्द देती है। मौसम का स्वभाव है, वह एक रूप नहीं होता। कभी गर्मी, कभी ठंढक । दुनिया में एक रूप कोई भी नहीं है। मौसम ही क्या ? कोई भी एक रूप नहीं है। सब बदलते रहते हैं। आदमी भी कभी ठंडा होता है, कभी गर्म हो जाता है। न जाने कितनी बार होता है ऐसा। यह परिवर्तन एक अटल नियम है। इसे कभी नहीं टाला जा सकता। सब बदलते हैं। हमारे विचार भी बदलते हैं। वे भी शाश्वत कहां हैं ? कुछ लोग कहते हैं कि ये विचार तो शाश्वत हैं ? दोनों का विरोधाभास-विचार
और शाश्वत-दोनों का योग ही कहां? विचार का अर्थ होता है चलने वाला। चलने वाला शाश्वत कैसे होगा ? कभी शाश्वत नहीं हो सकता। जो चल है वह अचल नहीं हो सकता और जो अचल है वह चल नहीं हो सकता। चल और अचल का योग तो हो सकता है। एक द्रव्य में चलाश भी होता है और अचलांश भी होता है, दोनों अंश मिल सकते हैं, किन्तु जो अचल है वह चल नहीं हो सकता और जो चल है वह अचल नहीं हो सकता। जो ध्रुव है वह परिवर्तनशाली नहीं हो सकता और जो परिवर्तनशील है वह कभी ध्रुव नहीं हो सकता। प्रत्येक द्रव्य में दोनों प्रकार के धर्म मिलते हैं-ध्रौव्यांश और चलांश, परिवर्तनशीलता और अपरिवर्तनशलता। विचार सदा परिवर्तनशील होता है। कहते हैं आज इस आदमी का विचार बदल गया। इसमें क्यों आश्चर्य होना चाहिए ? विचार यदि न बदले तो उसमें आश्चर्य होना चाहिए। विचार बदले उसमें कौन-सा आश्चर्य है ? विचार का काम ही है बदल जाना। कल जो विचार था वह आज नहीं होगा और आज जो विचार है वह आने वाले कल में नहीं होगा। अगर एक ही विचार पूरे जीवनकाल में टिक जाए तो मानना चाहिए बड़ा रूढ़ीवादी आदमी है। इतने लम्बे समय तक एक विचार टिक गया। विचार का काम है-सतत प्रवाह, गतिशीलता बदलते जाना, बदलते जाना। जो पकड़कर बैठ जाते हैं कि मैंने तो एक विचार पकड़ लिया है, अब छोडूंगा नहीं। वह बड़ा अहंकार और गर्व का अनुभव करता है, सोचता मैं बड़ा मजबूत आदमी हूं कि पकड़ी हुई बात को छोड़ता नहीं। अरे, कौनसी बड़ी बात कर दी तुमने ? यह तो मूर्खता की बात है। बात है मूर्खता की और मान लेता है गर्व की बात। गर्व से कहता है कि मैं कितना दृढ़ आदमी हूं। पत्थर बहुत मजबूत होता है। हड्डी बहुत मजबूत हो जाती है तो बहुत खतरा
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