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कैसे सोचें ? (२)
आवेश की वशीभूत होकर न्यायालय में आए थे। आवेश मिटा और वे शान्त हो गए।
विधायक और निषेधात्मक चिन्तन के ये कुछेक पहलू हैं। चिन्तन को विधायक बनाने के लिए परिस्थितियों को बदलना जरूरी होता है। उनको बदलने का एकमात्र विकल्प है-चित्त की एकाग्रता, चित्त की निर्मलता।
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