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कैसे सोचें ?
हठयोग के ग्रन्थों में अनेक स्थलों पर यह उल्लेख मिलता है कि अमुक द्रव्य का प्रयोग करो, अमर हो जाओगे। आयुर्वेद के ग्रन्थ भी इस बात का उल्लेख करते हैं कि अमुक रसायण का प्रयोग करो, अजर-अमर बन जाओगे। संभव है व्यक्ति अजर तो बन जाए, पर अमर नहीं बन सकता। यह आवश्यक नहीं है कि हर आदमी बूढ़ा होकर ही मरे। आदमी जवानी में भी मर सकता है और जवानी को लम्बे समय तब टिकाए भी रख सकता है। अजर रहने की बात समझ में आ जाती है पर अमर वाली बात समझ में नहीं आती। अमर तो कोई होता ही नहीं। यह भ्रम पैदा हो गया कि ग्रन्थों में अमर होने की बात लिखी पड़ी है, प्रयोग लिखे पड़े हैं तो यह अवश्यंभावी घटना है। अमर हो सकते हैं। कुछेक लोग ऐसी घोषणा भी कर देते हैं कि मैं नहीं मरूंगा। मैंने साधना के द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। बड़ी मूर्छा हो जाती है। लिखने वालों ने लिखा होगा किसी अपेक्षा से। उनकी अपेक्षा यह रही होगी कि अजर-अमर हो जाएगा अर्थात् अकाल मौत नहीं मरेगा। यह अपेक्षा विस्मृत हो गई और यह बात पकड़ ली गई कि आदमी अमर हो जाएगा। यह बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई।
संशय का अर्थ है-संभावना की अस्वीकृति। संशय करने वाला व्यक्ति संभावना को सर्वथा अस्वीकार कर देता है। हम आस्था का निर्माण करें और संभावना को स्वीकार करें। आस्था से संभावना का स्वीकार होता है। चिन्तन की त्रुटि कहां होती है, इसे हम समझें। कोई नई बात सामने आती है और आदमी तत्काल कह देता है-ऐसा कभी संभव नहीं होगा।
आज वायुयान आकाश में हजारों फुट ऊंचे उड़ता है। इसमें किसी को संदेह नहीं है। सब लोग जानते हैं, किन्तु पहले की बात है। एक अमेरिकन पादरी से एक कॉलेज के प्रिंसिपल ने कहा-'यह असंभव बात है। ऐसा हो ही नहीं सकता।' नियति की बात है कि उसी पादरी के दो लड़कों ने पैंतीस वर्ष पश्चात् पहली बार आकाश में उड़ान भरी।
संभावनाओं को अस्वीकार करना सबसे बड़ी त्रुटि है।
कई बार पत्रों में पढ़ते हैं, वैज्ञानिक जीन का निर्माण करने में लगे हुए हैं। वे जीन के निर्माण में सफल हो रहे हैं और संभव है वे जीन का निर्माण भी कर लें। लोग कह देते हैं, यह असंभव कल्पना है। जीन का निर्माण कैसे किया जा सकता है ?
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