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________________ कैसे सोचें ? (२) १९ अपने आप पर भरोसा करना । कोई किसी पर भरोसा नहीं करता। सब स्वयं पर भरोसा करते हैं। जब आदमी में अपनी क्षमता पर विश्वास, अपने कर्तृत्व पर विश्वास और सार्वभौम नियमों पर विश्वास होता है तब वह पूर्ण आस्थावान् बनता है। हम जानते हैं कि हमारे में असीम शक्ति है, अनन्त शक्ति है। हम यह भी जानते हैं कि यदि आदमी सम्यक् पुरुषार्थ करता है तो असंभव लगने वाला काम भी संभव बन जाता है। व्यक्ति का पुरुषार्थ और प्रयत्न फलवान् होते हैं। कर्तृत्व की भी एक सीमा है। इस दृष्टि से आदमी को सार्वभौम नियम भी जान लेने चाहिए। यदि कोई आदमी इस दिशा में प्रयत्न और पुरुषार्थ करे कि मनुष्य मरे ही नहीं, उसे मौत आए ही नहीं तो यह सार्वभौम नियम को न जानने का परिणाम होगा। कोई यह कह सकता है, मैं संकल्प शक्ति का प्रयोग करूंगा, इच्छाशक्ति और एकाग्रता की शक्ति का प्रयोग करूंगा, ध्यान का प्रयोग करूंगा और फिर यह घोषणा करूंगा कि मैं कभी नहीं मरूंगा, पर ऐसा होगा नहीं। संकल्पशक्ति और इच्छाशक्ति धरी रह जाएगी। एक दिन आएगा, आदमी मर जाएगा। क्यों ! क्योंकि उसने सत्य को समझा ही नहीं। मृत्यु सर्वाभौम नियम है। कोई भी इसका अपवाद नहीं हो सकता। __ यह भी एक सार्वभौम नियम है कि बिना बदले इस दुनिया में कुछ भी नहीं रह सकता। जिसने एक आकार लिया है, उसे दूसरा आकार लेना ही पड़ेगा। जिसने एक परिणमन किया है उसे दूसरा परिणमन करना ही पड़ेगा। बदलने और परिणत होने की सीमा हो सकती है, काल की अवधि हो सकती है। यह अवधि दस वर्ष की हो सकती है, हजार और लाख वर्ष की हो सकती है, असंख्य काल की हो सकती है। पर यह अटल नियम है कि बदलना ही पड़ेगा। हम एक परमाणु को लें। वह आज काले रंग का है। एक निश्चित अवधि के बाद उसे अपना रंग बदलना ही होगा। रंग स्वत: बदल जाता है। बदलने वाला दूसरा कोई नहीं है। यह एक सार्वर्भाम नियम है। यह एक ऐसी नियति है कि जिसे कभी टाला नहीं जा सकता। जो एक रंग में अभिव्यक्त हुआ है तो उसे दूसरा रंग भी लेना होगा। एक स्पर्श में आया है तो उसे दूसरा स्पर्श भी लेना होगा। जितने पर्याय हैं, वे सारे बदलते हैं। उन पर्यायों को बदलने से नहीं रोका जा सकता। उन्हें कभी शाश्वत नहीं बनाया जा सकता। जन्म एक पर्याय है। मृत्यु भी एक पर्याय है। जिसने जन्म लिया है, उसे मरना ही पड़ेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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