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________________ कैसे सोचें ? जाता है और उस आवेश में क्या-क्या नहीं कर दिया जाता ? गालियां बोली जाती हैं, नौकर को पीट दिया जाता है, उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। यह सारा अहंकार के आवेश के कारण होता है। क्या यह जरूरी है, हर आदमी हर आदमी का आदेश माने ? कोई जरूरी नहीं है। मानना अच्छा होता है, पर कभी-कभी न मानना उससे भी अच्छा होता है। मालिक सोचता है तो नौकर नहीं सोचता ? मालिक ने नौकर से कहा-'जाओ, बगीचे में पानी सींच आओ।' नौकर बोला-'मालिक! बाहर मूसलाधार वर्षा बरस रही है। पानी सींचने से क्या ?' मालिक बोला-'मूर्ख हो तुम । वर्षा बरस रही हैं तो छाता ले जाओ और पानी सींच आओ।' नौकर अब क्या करे ? कहने वाला मालिक इतना भी नहीं सोचता कि मूसलाधार वर्षा हो रही है, पौधों को पानी सींचने का अर्थ ही क्या हो सकता है ? नौकर इस आदेश को माने तो क्यों ? ___ आदेश देने वाले सभी बहुत समझदार होते हैं और बहुत विवेकपूर्ण आदेश देते हैं, ऐसा तो नहीं है। बहुत बार ऐसे आदेश दे दिये जाते हैं कि उन्हें मान लेने पर अनर्थ हो सकता है। किन्तु न मानने पर मालिक का क्रोध और आवेश तैयार रहता है। उसके परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। आवेश के कारण चिन्तन की दिशाएं विकृत बन जाती हैं। आदमी एक दूसरे को समझ नहीं पाता। पति-पत्नी, भाई-भाई, नौकर-स्वामी के संबंधों में जो दूरी आती है, उसमें आवेश का मुख्य हाथ रहता है। जब आवेश का परदा बीच में होता है तब आदमी दूसरे आदमी को समझ नहीं पाता, देख नहीं पाता। आवेश ही दिखेगा। सामने वाला व्यक्ति वैसा ही दिखेगा जैसा प्रतिबिम्ब आवेश के साथ जुड़ा हुआ है। आवेश चिंतन को कभी सम्यक् नहीं होने देता। इसलिए संतुलित चिन्तन का मानदण्ड बनता है-अनावेश अवस्था का अभ्यास। यह कैसे हो सकता है ? क्या क्रोध और अहंकार को कम किया जा सकता है ? लोग इस भाषा में नहीं सोचते कि अहंकार को मिटाया जा सकता है या कम किया जा सकता है ? वे इस भाषा में सोचते हैं कि क्रोध तो स्वभाव है, वह मिटने वाला नहीं है। अहंकार मनुष्य का स्वभाव है, वह मिटने वाला नहीं है। आदमी बदलता नहीं। ये मिटते नहीं। आदमी नहीं बदलता, इसको मान लेने पर बदलने का प्रश्न ही नहीं उठता। ध्यान का अभ्यासी व्यक्ति सबसे पहले इस मिथ्या धारणा को तोड़ता है। जो इस धरणा को नहीं तोड़ता, वह ध्यान का अच्छा अभ्यासी नहीं हो सकता। ध्यान का अभ्यास करने वाले को पहला पाठ पढ़ना होगा कि आदमी बदल सकता है, उसका स्वभाव बदल सकता है। यदि आदमी न बदले, स्वभाव न बदले तो ध्यान को ही बदल देना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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