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________________ कैसे सोचें ? (२) की कोशिकाएं जीवित हैं तो आदमी मरेगा नहीं, फिर जी जाएगा। कई बार ऐसा देखा गया है कि डाक्टर जिस व्यक्ति को मृत घोषित कर देता है, वह व्यक्ति कुछ समय बाद जी उठता है। कभी-कभी वे व्यक्ति भी जी जाते हैं, जिनकी अर्थी निकल चुकी है, जो श्मशानघाट पहुंच चुके हैं, जिनको चिता पर लेटा दिया गया है, चारों ओर लकड़ियां चिन दी गई हैं, पर अचानक हलचल होती है, लकड़ियां इधर-उधर बिखर जाती हैं और वह व्यक्ति अंगड़ाई लेते हुए उठ-बैठता है। लोग उसे भूत समझ लेते हैं, पर यथार्थ में वह मरा ही नहीं था। वह जीवित था। डाक्टर ने घोषित कर दिया और हमने मान लिया। पर वास्तव में उसका मस्तिष्क सक्रिय था, मस्तिष्क मरा नहीं था और जब तक मस्तिष्क नहीं मरता, आदमी नहीं मरता, फिर चाहे हार्ट बंद हो जाए, नाड़ी बन्द हो जाए। हमारे जीवन का मूल आधार है-मस्तिष्क । वह मस्तिष्क जितना ठंडा रहता है उतना ही जीवन अच्छा रहता है और उतना ही चिंतन स्वस्थ होता है। स्वस्थ चिंतन के लिए, विधायक और संतुलित चिन्तन के लिए मस्तिष्क का ठंडा होना बहुत जरूरी है। इस दृष्टि से चिंतन का दूसरा मानदंड होगा कि चिंतन आवेश की स्थिति में किया जा रहा है या अनावेश की स्थिति में किया जा रहा है ? आवेश चिंतन का दोष है। आवेश आया, चिंतन शुरू किया, चिंतन तो हो सकता है पर चिंतन स्वस्थ नहीं होगा, सही नहीं होगा, संतुलित और विधायक नहीं होगा। विधायक चिन्तन तभी हो सकता है जब आवेश की स्थिति न हो। चिंतन का आधार तथ्य होना चाहिए। तथ्यों के आध पार पर जो चिंतन होता है, वह चिंतन उपयोगी तथा जहां तथ्य गौण और आवेश मुख्य हो जाता है वहां चिन्तन कार्यकारी नहीं होता है। जो व्यक्ति । यान का अभ्यासी नहीं होता, जिसका मन पर अधिकार नहीं होता, जिसका मन शांत और संतुलित नहीं होता, वह व्यक्ति तात्कालिक चिंतन करता है, आवेशपूर्ण चिंतन करता है। उसका चिंतन कभी सही नहीं होता। __एक राजनेता के पास मित्र ने आकर कहा-'अमुक-अमुक व्यक्ति आपको गालियां बक रहा था।' राजनेता ने सुना, आगबबूला हो गया, बोला-पहले मुझे चुनाव जीत लेने दो, मंत्री बन जाने दो, फिर मैं बता दूंगा कि गाली देने का परिणाम क्या होता है ? यह आवेशपूर्ण चिंतन का परिणाम है। उसे जानना चाहिए था कि अमुक आदमी ने गालियां दीं या नहीं। एक बात हुई, आवेश जागा और आवेश ही चिंतन बन गया। यह भयंकर अवस्था है। क्रोध का आवेश और अहंकार का आवेश कितना भयंकर होता है, यह अज्ञात नहीं है। इसके दुष्परिणामों से हम अवगत हैं। नौकर बात नहीं मानता, तत्काल अहंकार का आवेश आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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