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कैसे सोचें ? (२)
गर्मी का मौसम । जेठ की दुपहरी । चिलचिलाती धूप । इस गर्मी में आदमी का दिमाग भी गर्मा जाता है । दिमाग ठंडा होता है तो चिन्तन में सुविधा होती है । दिमाग गर्म होता है तो चिन्तन में असुविधा होती है असुविधा ही नहीं, अनेक कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं, आदमी न जाने क्या-क्या कर बैठता है । स्वास्थ्य का एक लक्षण है-पैर गर्म रहें और दिमाग ठंडा रहे । पर उल्टा हो जाता है। पैर ठंडे हो जाते हैं और दिमाग गर्म हो जाता है । यह विचित्र स्थिति है । यदि दिमाग ठंडा रहता है तो आदमी लम्बे समय तक जी सकता है, शांति और आनन्द के साथ जी सकता है । दीर्घ श्वास का एक सूत्र है- दिमाग को ठंडा रखना।
आज के वैज्ञानिक एक नई विधि का विकास कर रहे हैं, जिससे आदमी पांच सौ वर्षों तक या हजार वर्षों तक जी सके। यह विधि है- शीतलीकरण की। आदमी को ठंड में जमा दिया जाय। दस वर्ष तक वह ठंड में जमा रहा । दस वर्ष बाद उसे गरमाया और वह जी उठा । यदि बार-बार इस शीतलीकरण की प्रक्रिया हो दोहराया जाये तो वह पांच सौ वर्ष भी जी सकता है और हजार वर्ष भी जी सकता है। वैज्ञानिकों ने चींटियों को ठंड में जमा दिया । सब चींटियां मृतवत् हो गईं। दस मिनट बाद उन्हें गरमाया गया । पुनः जी उठीं। उनमें हलन-चलन प्रारम्भ हो गया। हम बहुत बार देखते हैं, मक्खियां और चींटियां जब बहुत ठंडे पानी में गिर जाती हैं, तब वे मृत जैसी हो जाती हैं, फिर जब उन्हें भाप से गरमाया जाता है या धूप में रखा जाता है तो वे पुनः जीवित हो उठती हैं ।
मनुष्य का कायाकल्प किया जा सकता है- शीतलीकरण के द्वारा, पूरे शरीर को ठंडा करके। यदि बीमार को ठंडा किया जा सके तो वह बहुत लम्बा सकता है। एक बात और है। पूरे शरीर को ठंडा न भी किया जा सके पर यदि दिमाग ठंडा रह सके तो आदमी लम्बा जी सकता है । जितनी आकाल-मृत्यु होती है, छोटी आयु में मौत होती है, उसका एक कारण यह है कि व्यक्ति का दिमाग बार-बार गर्म हो जाता है, आग बार-बार जल उठती है, आंच इतनी गहरी हो जाती है कि कोशिकाएं जल्दी नष्ट होने लग जाती हैं। हमारे जीवन का आधार है-मस्तिष्क की कोशिकाएं। जब तक कोशिकाएं जीवित रहती हैं, सक्रिय रहती हैं तो हृदय गति बन्द हो जाने पर भी आदमी मरता नहीं। हृदय की गति बंद है, श्वास की गति बन्द है किन्तु यदि मस्तिष्क
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