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हृदय-परिवर्तन : एक महान् उपलब्धि
कुछ समय पहले की बात है। एक चर्चा पढ़ी थी। उसका विषय था-सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है ? जहां चर्चा होती है, वहां अनेक मत होते हैं। समाज में अनेक धाराओं के लोग हैं और अनेक मतों द्वारा विचारों का पोषण होता है। नृवंश-शास्त्रियों का मत है कि संतति का विकास मनुष्य समाज की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मनुष्य ही एक ऐसा बुद्धिमान प्राणी है, जिसने अपनी संतति का विकास किया है। प्राणियों की अनेक जातियां आज लुप्त हो चुकीं, जबकि मनुष्य की आबादी लगभग पांच अरब तक पहुंच गयी। संतति का विकास मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
मानव-विकासशास्त्रियों का मत है कि दो पैरों पर खड़ा होना, दो हाथों को खाली रखना, मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है। वास्तव में यह महान् उपलब्धि है। रीढ़ के आधार पर खड़ा होना, दोनों हाथों को काम करने का अवसर देना, एक महान् उपलब्धि है। यदि मनुष्य चौपाया (चार पैरों वाला) होता तो उसका मूल्य गाय-भैंस से अधिक नहीं होता।
मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है-अन्यान्य ग्रहों पर मनुष्य जाति की खोज। इस पूरे ब्रह्माण्ड में मनुष्य कहां-कहां है-यह खोज हो रही है और यदि यह खोज हो गई तो यह सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
प्रश्न एक था। पर उसके समाधान में नाना विचार, नाना धारणाएं सामने आई। इन सारी धारणाओं के संदर्भ में मैं अपना अभिमत प्रगट करना चाहता हूं कि मनुष्य की जो प्रतिमा बनी है, मनुष्य और पशु के बीच जो भेद-रेखा खींची गई है, उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण धारणा है-हृदय का परिवर्तन। कोई भी अन्य प्राणी हृदय-परिवर्तन करना नहीं जानता। बड़े से बड़ा और अक्लमंद पशु भी हृदय-परिवर्तन करना नहीं जानता। मात्र मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो हृदय-परिवर्तन करना जानता है। उसने हृदय-परिवर्तन के सिद्धान्त की स्थापना की है और उसका प्रयोग किया है। उसमें वह सफल हुआ है।
मनोविज्ञान ने कुछ मौलिक मनोवृत्तियां मानी हैं। उनकी संख्या में मतभेद है फिर भी दो-चार मनोवृत्तियां सर्वसम्मत हैं। आहार की खोज, काम की तृप्ति, पलायन और युयुत्सा-ये मौलिक मनोवृत्तियां हैं।
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