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________________ हृदय परिवर्तन : एक महान उपलब्धि १९७ आहार की खोज मौलिक मनोवृत्ति है। इसका संवेग है भूख। आदमी को भूख लगती है, तब वह आहार की खोज करता है। __ काम की तृप्ति मौलिक मनोवृत्ति है। इसका संवेग है मैथुन । मनुष्य संतति पैदा करता है। हर प्राणी करता है। पलायन मौलिक मनोवृत्ति है। इसका संवेग है भय। आदमी डरता है और डर से पलायन कर जाता है, भाग जाता है। युयुत्सा मौलिक मनोवृत्ति है। इसका संवेग है मान । युयुत्सा का अर्थ है लड़ने की इच्छा। आदमी लड़ने-झगड़ने में रस लेता है। ये कुछ मौलिक मनोवृत्तियां हैं। इनका परिष्कार आदमी ही कर सकता है, दूसरा कोई प्राणी नहीं कर सकता। काम की वृत्ति का परिष्कार ब्रह्मचर्य में होता है। किसी भी प्राणी या पशु ने ब्रह्मचर्य का विकास नहीं किया। भय का परिष्कार अभय में होता है। किसी भी प्राणी ने अभय का विकास नहीं किया। पशु आज भी उतने ही डरते हैं, जितने पहले डरते थे। उनमें उतनी ही काम-भावना है, जितनी पहले थी। युयुत्सा का परिष्कार सहिष्णुता में होता है। किसी भी प्राणी ने यह परिष्कार नहीं किया। पशु जितने पहले लड़ते थे, आज भी उतने ही लड़ते हैं। भौकने वाला भौंकता है, लड़ने वाला लड़ता है। किसी भी देश के कुत्ते ने यह विकास नहीं किया कि उसने भौंकना बन्द कर दिया हो, परस्पर लड़ना बंद कर दिया हो। एक मुहल्ले का कुत्ता जब दूसरे मोहल्ले में जाता है, तब लड़ाई न होती हो, ऐसा न सुना न देखा। संभव ही नहीं है। अमेरिका का हो या रूस का हो, सबकी यह मनोवृत्ति समान है। इसमें कोई अन्तर नहीं है। मनुष्य ने अपनी मौलिक मनोवृत्ति का परिष्कार किया है। मनोविज्ञान के संदर्भ में हृदय-परिवर्तन का अर्थ हो सकता है-मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार। जो मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार है वह चेतना का परिवर्तन है, हृदय का परिवर्तन है। दिशा बदल जाना साधारण बात नहीं। आदमी एक ही दिशा में चलता है तो एक ही प्रकार का आचरण और व्यवहार होता है। जब दिशा बदलती है तब सारी स्थितियां बदल जाती हैं, आचरण और व्यवहार बदल जाता है। हिम्मतसिंह पटेल सौराष्ट्र का निवासी था। वह हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ था। उसे अपने शारीरिक बल पर गर्व था। वह मानता था, ऐसा कोई भी कार्य नहीं है, जो मैं न कर सकूँ । एक दिन एक व्यक्ति ने कहा- 'हिम्मत सिंह ! तुम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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