________________
विधेयात्मक भाव
१८५
माता-पिता और न लड़के-लड़कियां । सभी सम्बन्धों से अतीत हो जाएंगे। इसका तात्पर्य यह होगा कि प्रेक्षा का मन्दिर खाली हो जाएगा। यहां प्रेक्षा-प्रदीप में लोग आ रहे हैं, यह सोचकर नहीं कि हमें वीतराग बना दिया जाएगा। यह सोचकर कि हमारे दोषों की विषमता मिटेगी, आरोग्य प्राप्त होगा। विषमता मिटे, साम्य आए, रोग मिटे, आरोग्य आए यही एकमात्र आकांक्षा है शिविर साधकों की।
__आयुर्वेद विज्ञान की भाषा में जिसे आरोग्य कहा जाता है, अध्यात्म विज्ञान की भाषा में उसे समता कहा जाता है। दोनों एक ही हैं। आयुर्वेद के आचार्यों ने आरोग्य की बहुत सुन्दर परिभाषा दी है-'दोषाणां साम्यं आरोग्यम्'-दोनों का समीकरण आरोग्य है। परन्तु प्रश्न है कि समीकरण का उपाय क्या है ? इसका एक उपाय है-सतत-स्मृति, सतत जागरूकता। मानस का ऐसा निर्माण हो जाए कि विधायक भावों की स्मृति निरन्तर बनी रहे। विधायक भावों के सूत्र हैं-सत्य, क्षमा, मृदुता, ऋजुता। ये सूत्र हैं, शब्द हैं। क्या इन शब्दों को रटने मात्र से कोई ऋजु या मृदु हो जाएगा। क्रूरता या माया मिट जाएगी ? ऐसा घटित नहीं होगा। ये विधायक भावों का प्रतिनिधत्व करने वाले शब्द हैं। इनका चयन बहुत मनोवैज्ञानिक है। ये केवल शब्द नहीं अपितु, विधायक भावों के प्रतिनिधि हैं। जो विधायक भाव अन्तराल में छिपे हुए हैं, जिन्हें देखा नहीं जा सकता, जाना नहीं जा सकता, उसके साथ संपर्क स्थापित करने के लिए सत्य आदि शब्द संपर्क-सूत्र बन जाते हैं। आचार्यों का यह प्रतिपादन यथार्थ है। सत्य शब्द की भावना में उतरने पर विधायक भाव जाग जाएगा। मृदुता और ऋजुता शब्द की गहराई में डुबकियां लेते ही मृदुता और ऋजुता का विधायक भाव जागृत हो जाएगा। एक महत्त्वपूर्ण बात और बता दूं। आचार्य कोई भी बात बतलाते हैं, वह मंत्र रूप होती है। आचार्य का अर्थ है-मंत्रदाता। वे मंत्रदान करते हैं। मंत्र का अर्थ होता है-रहस्य, गूढ़ बात। वह छिपी रहती है। कुछ थोड़ा सामने आता है और कुछ छुपा का छुपा रह जाता है। पूरी बात समझ में नहीं आती, सामने नहीं आती। पूरी बात आचार्य ही समझा सकते हैं। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि सारी बातें समझ ली गई हैं और जब भेद खुलता है तो प्रतीत होता है कि कुछ भी नहीं समझा गया है। उस रहस्य की चाबी आचार्य के हाथ में ही रह जाती है।
भावों को हम जान गए। उनका प्रतिनिधित्व करने वाला शब्द भी हम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org