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________________ १८६ कैसे सोचें ? जान गए, पर दोनों के बीच संपर्क-सूत्र को हम नहीं जान पाए। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाला साधक उस संपर्क-सूत्र को भी जान जाता है। वह है-जागरूकता, भाव क्रिया। इसका एक अर्थ है-सतत स्मृति। जिस गुण या दोष को प्रकट करना चाहते हैं उसके प्रति सतत उपयोग, सतत स्मृति होगी तो वह अवश्य ही प्रकट होगा। कभी उस स्मृति की और फिर दीर्घकाल तक उसे भुला दिया तो वह प्रकट नहीं होगा। यह सतत धारा या अखण्ड धारा की बात बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। बूंद-बूंद से वह काम नहीं हो सकता, जो काम धारा से होता है। कभी कुछ किया, कभी नहीं किया, मन हुआ तब ध्यान करने बैठ गए। मूड नहीं हुआ तो दो महीने भी ध्यान नहीं किया, यह बूंद-बूंद की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया अधिक लाभप्रद नहीं होती। सफलता के लिए निरन्तरता चाहिए। जिस भाव को हमें विकसित करना है, प्रकट करना है, उसका सतत स्मृति करनी चाहिए। उसका निरन्तर अभ्यास करने से वह अवश्य ही प्रकट हो जाता है। ___ सतत स्मृति, सतत जागरूकता-यह संपर्क-सूत्र है जो हमें भीतरी भावों से जोड़ता है। शब्द मंत्र होता है। प्रत्येक शब्द मंत्र है। आगम का एक श्लोक हैधम्मो मंगल मुक्किठें, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो।। हमें लगता है कि यह उपदेश वाक्य है, पर यह है बड़ा मंत्र। इसी प्रकार एक और श्लोक है चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्ढियो। संती संति करे लोऐ, पत्तो गई मणुत्तरं ।।। यह भी बहुत बड़ा मंत्र है। जैन आचार्यों ने आठ कर्मों को क्षीण करने के लिए भिन्न-भिन्न मंत्रों की रचना की। ज्ञानावरण कर्म को क्षीण करने का मंत्र है-'अनन्तज्ञानिभ्यो नमः।' दर्शनावरण कर्म को क्षीण करने का मंत्र है-'अनन्तदर्शनिम्यो नम:।' अन्तराय कर्म को क्षीण करने का मंत्र है-'अनन्तवीर्येभ्यो नमः।' इस शब्द-रचना में कोई गूढ़ता नहीं लगती, पर ये सारे शब्द ज्ञान, दर्शन और शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन और अनन्तवीर्य की सतत स्मृति बनी रहे तो वह इतना शक्तिशाली मंत्र बन जाएगा कि वे भाव हमारे भीतर अवश्य प्रकट होंगे। ___ आज सम्मोहन चिकित्सा करने वाले या मनोवैज्ञानिक चिकित्सक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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