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विधेयात्मक भाव
शांत थी। पर कौआ उत्तेजना से भरा हुआ बात कर रहा था। ऐसा बहुत बार होता है । क्षमा का निमित्त भी क्रोध जगा देता है और क्रोध उभरता ही नहीं। तीर्थंकरों और साधकों की अनेक घटनाएं हमारे समक्ष हैं, जिसमें क्रोध और उत्तेजना को उभारने का प्रयत्न किया गया, पर वे तीर्थंकर और साधक क्षमा की ऊर्जा बिखेरते रहे। वे कुपित हुए ही नहीं। बार-बार प्रयत्न करने पर भी, प्रयत्न करने वाले को सफलता नहीं मिली।
__महाराष्ट्र के एक महान् साधक संत एकनाथ नदी में स्नान कर आते। एक व्यक्ति उन पर थूक देता। संत पुन: नदी पर जाते, स्नान करते और घर की ओर प्रस्थान करते। पर फिर वह व्यक्ति उन पर थूक देता। वे पुनः स्नान कर आते। स्नान करने और थूकने का क्रम चलता रहा। उन्हें इक्कीस बार स्नान करना पड़ा। अंत में वह व्यक्ति हार गया और जब संत इक्कीसवीं बार स्नान कर आ रहे थे तब पैरों में लुढ़ककर क्षमा याचना करने लगा। संत ने उसे उठाकर छाती से लगाते हुए कहा-भाई ! तुम मेरे परम सखा हो। मैं मां गोदावरी की गोद में प्रतिदिन एक बार जा पाता हूं। आज तुम्हारे योग से मां की गोद में इक्कीस बार जाने का सुअवसर मिला। धन्य हो गया। तुम मेरे उपकारी हो।
क्या कारण है कि विरोधी निमित्तों के होने पर भी भिन्न प्रकार की घटनाएं घट जाती हैं ? इन सारी बातों से यह पता चलता है कि भीतर में जिस प्रकार की भावधारा होती है, उसी प्रकार का आचरण अभिव्यक्त होता है। वहां निमित्त गौण और अकिंचित्कर हो जाते हैं। उमादान का स्थान पहला और निमित्त का दूसरा। भावधारा उपादान है। यदि हम भीतर की भावधारा को मोड़ देते हैं तो वहां बाहर के निमित्त बहुत प्रभाव नहीं डाल सकते। जब तक व्यक्ति ध्यान के द्वारा भीतर प्रवेश नहीं करता, भीतरी गहराइयों में नहीं उतरता और अपने अन्त:करण को पहचानने का प्रयत्न नहीं करता तब तक निमित्त हावी रहता है और तब आदमी उसी के प्रभाव में जीने लगता है। किन्तु जिस व्यक्ति ने ध्यान के द्वारा अपने भावों को पहचान लिया है, उनके साथ संपर्क स्थापित कर लिया है, वहां निमित्त गौण हो जाते हैं और भाव प्रधान बन जाते हैं।
प्राचीन साहित्य में दस प्रकार के धर्म, चार या बारह प्रकार की अनुप्रेक्षाएं तथा अनेक प्रकार के आलम्बन बतलाए गए हैं। उनके प्रतिपादन का कारण क्या था ? वह यही तो था कि साधक इन माध्यमों से भावों के साथ सीधा संपर्क स्थापित कर सके, भावधारा तक पहुंच सके और जो शुद्ध भावधारा है, विधायक भावधारा है, उसको जगा सके।
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