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________________ १७८ कैसे सोचें ? कोई आवेश आकस्मिक नहीं आता। वह कोई आकस्मिक घटना नहीं है। कोई घृणा करता है, वह आकस्मिक नहीं है। हमारे भीतर वे भाव निरन्तर प्रवाहित हैं। उनकी धारा सतत चलती रहती है। निमित्त मिलने पर भाव प्रकट होते हैं। उनकी अभिव्यक्ति होती है, उत्पत्ति नहीं होती। वे मात्र अभिव्यक्त होते हैं, उत्पन्न नहीं होते। वे नए रूप से नहीं जन्मते। वे जन्मे हुए ही हैं। निमित्त मिलता है और अभिव्यक्त हो जाते हैं। प्रत्येक पदार्थ के साथ दो पर्याय जुड़े हुए रहते हैं-व्यक्त और अव्यक्त । अव्यक्त पर्याय व्यक्त हो जाता है और व्यक्त पर्याय अव्यक्त हो जाता है। यह भावधारा अव्यक्त है, सूक्ष्म है। इसे निमित्त मिलता है और तब यह व्यक्त हो जाती है। व्यक्त होने पर हम इसे आचरण कह देते हैं। किसी भी आचरण या व्यवहार की व्याख्या आचरण और व्यवहार के स्वरूप के आधार पर नहीं की जा सकती। भावधारा के आधार पर की जा सकती है। आचरण से हमें पता चल जाता है कि व्यक्ति में किस प्रकार की भावधारा प्रवाहित हो रही है। जो व्यक्ति क्षण-क्षण में क्रोध करता है, उत्तेजित होता है, भयभीत होता है, अहंकार-ग्रस्त होता है तो मान लेना चाहिए कि उसमें उस समय निषेधात्मक भावधारा प्रवाहित हो रही है और वह व्यक्ति उसी के प्रवाह में प्रवाहित होकर इन आवेशों से आविष्ट हो रहा है। कोई आदमी सहिष्णु है, क्षमाशील और विनयी है, अनुशासित और अहंकारशून्य है, मैत्री और प्रेम से परिपूर्ण है तो मान लेना चाहिए कि उसमें उस समय विधायक भावधारा बह रही है।यह सारा आकस्मिक नहीं होता। यदि आकस्मिक होता तो हर कोई कर लेता। व्यक्ति ने भीतर की धारा में जाकर विधायक भावधारा को सक्रिय बनाने का प्रयत्न किया है। वह भावधारा इस दिशा में प्रवाहित है और वह निमित्त पाकर प्रकट हो जाती है। बड़ा आश्चर्य होता है। विरोधी निमित्त में भी दोनों प्रकार की घटनाएं मिलती हैं। अनुकूल निमित्त में घटना घटित होती है, आश्चर्य नहीं होता। जैसे निमित्त है क्षमा का और जाग जाता है क्रोध, निमित्त है क्रोध का, और जाग जाती है क्षमा। बड़े आश्चर्य की बात है। ___एक कहानी है। शीतला देवी का मंदिर था। एक कौआ आकर बैठ गया। शीतला देवी बोली-अरे, यहां कैसे आए ? क्यों बैठे हो यहां? कौआ बोला-क्या यहां कोई नहीं आ सकता ? क्या इस स्थान पर तेरा ही अधिकार है ? कौआ बैठा रहा। वह बींटे करने लगा। अनेक बार बीट की। शीतला बोली-अरे भाई कौआ . आज तो बहुत ठंडी-ठंडी बीट कर रहा है। कौए ने उत्तेजित होकर कहा-जो गर्म बीट करे उसे रख, मुझे यहां नहीं रहना है। कौआ उड़ गया। __ शीतला देवी बहुत सीधी-साधी बात कर रही थी। वह अपने आप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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