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________________ विधेयात्मक भाव दुनिया में कोई भी तत्त्व ऐसा नहीं है जो न बदलता हो। सबमें परिवर्तन होता है। हृदय में भी परिवर्तन होता है। हृदय-परिवर्तन'-इस प्रयोग का एक विशेष तात्पर्य है। यह कोई हृदय को ही बदल देना नहीं है, चेन्ज ऑफ हार्ट नहीं है। चेन्ज ऑफ हार्ट तो आज डॉक्टर करते ही हैं। वे कृत्रिम हृदय लगाकर आदमी को लम्बे समय तक जीवित रख लेते हैं। __ पति और पत्नी-दोनों डाक्टर के पास गए। पति का हृदय कमजोर था। उसको बार-बार हृदय-रोग हो जाता था, हार्ट ट्रबल हो जाता था। डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कहा-ऑपरेशन करना होगा। ऑपरेशन हो जायेगा। मैं जीर्ण-शीर्ण को बदलकर, मजबूत हार्ट लगा दूंगा। ऑपरेशन किया। हार्ट बदल दिया। वह स्वस्थ हो गया। एक बार वह पत्नी डॉक्टर से मिली। डॉक्टर ने पूछा-कैसे हैं तुम्हारे पति ? स्वस्थ हैं ? हार्ट ठीक काम कर रहा है ? वह बोली-डॉक्टर महोदय!. पति बिल्कुल स्वस्थ हैं। हार्ट ठीक काम कर रहा है। पर आजकल उन्हें क्या हो गया कि वे झूठे वादे बहुत करते हैं, झूठे आश्वासन बहुत देने लगे हैं। डाक्टर बोला-'अरे' मेरे से ही भूल हो गई। मैने जल्दबाजी में एक राजनेता का हार्ट उन्हें लगा दिया।' । हार्ट बदल देने मात्र से हृदय-परिवर्तन हो गया, ऐसा मानना अज्ञानपूर्ण है। हम जिस हृदय-परिवर्तन की चर्चा कर रहे हैं, वह एक हृदय को निकाल कर कृत्रिम हृदय लगा देना नहीं है, किसी आदमी का हृदय दूसरे आदमी पर प्रत्यारोपित करना नहीं है। हृदय-परिवर्तन से हमारा तात्पर्य है निषेधात्मक भावों को समाप्त कर विधायक भावों को जगाना। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर दो धाराएं प्रवाहित होती हैं। एक है निषेधात्मक भावों की धारा और दूसरी है विधेयात्मक भावों की धारा । घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, राग-ये सारे निषेधात्मक भाव हैं। इनकी एक धारा प्रवाहित हो रही है। मैत्री, अहिंसा, सहिष्णुता, आर्जव, मार्दव-ये विधेयात्मक भाव हैं। इनकी एक धारा प्रवाहित हो रही है। ये दोनों धाराएं प्रत्येक आदमी में प्रवाहित रहती हैं पर हमारी इस दुनिया में निषेधात्मक भावों की धारा को प्रकट होने का बहुत अवसर मिलता है, निमित्त अनेक मिल जाते हैं। पग-पग पर इतने निमित्त हैं कि निषेधात्मक भाव सहजता से उत्पन्न हो जाते हैं। हमारा कोई भी आचरण या व्यवहार आकस्मिक नहीं होता। किसी को गुस्सा आता है तो हम सोचते हैं कि यह आकस्मिक है। पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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