________________
१७६
कैसे सोचें ?
किया है। उसने ऐसा प्रपंच रचा है कि आदमी मारा-मारा फिर रहा है। वह जीवन भी उसकी परिक्रमा करता है। मैं कई बार सोचता हूं कि कोल्हू का यह बैल चक्कर क्यों लगा रहा है ? कारण क्या है ? अनन्त काल से वह चक्कर लगा रहा है। पर परिक्रमा कभी पूरी ही नहीं होती। पर एक सुविधा है। आदमी ने उस बैल की आंख पर पट्टी बांध रखी है। यदि उसकी आंखें खुली रह जाएं तो दुविधा हो सकती है। समझदार है कोल्हू के बैल को चलाने वाला। उसकी आंखें बंद कर देता है, जिससे उसे पता न चले कि वह कहां जा रहा है। न जाने कितना लम्बा रास्ता तय कर लिया है। पर उस बेचारे को क्या पता है कि कोरी परिक्रमा हो रही है, गति नहीं हो रही है। कोल्हू का बैल जीवन भर चलता है, परिक्रमा करता है, उसे यदि जीवन की संध्या में पूछा जाए कि तुम कितने चले ? क्या उत्तर होगा ? चला कुछ भी नहीं। उसी लकीर पर परिक्रमा देता रहा।
हम केन्द्र पर ध्यान दें। मूल वृत्ति को पकड़ें। यदि ध्यान की साधना करने वाला व्यक्ति केन्द्रीय वृत्ति को नहीं पकड़ेगा, उसकी खोज नहीं करेगा तो ध्यान साधना बहुत सफल नहीं हो सकेगी। उसे केन्द्रीय वृत्ति को पकड़कर यह जानना है कि कौन-सा तत्त्व सारे निषेधात्मक भावों का संचालन कर रहा है। ये सभी निषेधात्मक भाव कहां से आ रहे हैं ? यदि वह इन भावों को पकड़ने में सक्षम हो जाता है तो साधना सफल हो जाती है। तब वह जान जाएगा कि क्रोध क्यों पैदा हो रहा है ? अहंकार और भय क्यों पैदा हो रहा है। कारण समझ में आ जाएगा। जितने निषेधात्मक भाव हैं वे सारे एकत्रित मिल जाएंगे।
चोर जेल में था। वह सीखचों से बाहर झांक रहा था। एक आदमी ने पूछा-'अरे, किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो ? क्या कोई मिलने आने वाला है ?' वह बोला-'बाहर से कौन आएगा ? मेरे परिवार के सारे सदस्य यहीं हैं, जेल में ही हैं। बाहर कोई है ही नहीं।'
सारे निषेधात्मक भाव भीतर हैं। बाहर से आने वाला कोई नहीं है। जब केन्द्र में स्थित लोभ पकड़ लिया जाएगा तब पता चलेगा कि अहंकार, भय, ईर्ष्या, मात्सर्य-ये सब भीतर ही बैठे हैं। बात समझ में आ जाएगी। सचाई का उद्घाटन हो जाएगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org