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________________ १८० कैसे सोचें ? ध्यान करने वाले और ध्यान न करने वाले व्यक्ति तथा धर्म की आराधना करने वाले और न करने वाले व्यक्ति में यदि कोई भेदरेखा खींचनी हो तो यही खींची जा सकती है कि अपने प्रयत्नों के द्वारा विधायक भावों की धारा को सक्रिय करता है, प्रवाहित करता है, वह ध्यानी होता है, धार्मिक होता है, आराधक होता है। जो ऐसा नहीं कर पाता, जो निषेधात्मक भावों की धारा में विशेष रस लेता है, वह अधार्मिक होता है, वह ध्यान करने वाला नहीं होता। यह बहुत ही मनोवैज्ञानिक पहचान है धार्मिक और अधार्मिक की, ध्यानी और अध्यानी की। इसी भेदरेखा के आधार पर मनुष्य के सारे आचरणों और व्यवहारों की व्याख्या की जा सकती है। आज लोग चिंतित हैं, इस दुनिया में हिंसक घटनाएं बहुत घटित हो रही हैं, झूठ बहुत बोला जा रहा है, चोरियां और डकैतियां अधिक हो रही हैं, बलात्कार और व्यभिचार बढ़ा है, ईर्ष्या और द्वेष का बोलबाला है, अपराध दिनोदिन बढ़ रहे हैं, उपद्रव और आक्रामक वृत्तियां अनियंत्रित हो रही हैं, साम्राज्यवादी मनोवृत्ति फैल रही है-इसका कारण क्या है ? भावधाराओं के आधार पर यह सुगमता से कहा जा सकता है कि आज निषेधात्मक भावों की अधिक सक्रियता से हिंसा आदि को सहारा मिलता है और तब समाज में ये वृत्तियां अधिक पनपती हैं। प्रश्न होता है कि मनुष्य में विधायक भाव अधिक हैं या निषेधात्मक भाव ? किसको कम बताएं और किसको अधिक ? प्रश्न जटिल है पर जटिल प्रश्न का उत्तर भी हमें प्राप्त हो जाता है। एक शुकराज राजा के पास गया। दोनों में संवाद हुआ। शुकराज की बुद्धि पर राजा स्तब्ध रह गया। उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-शुकराज! आज बहुत विलम्ब से पहुंचे। शुकराज बोला-महाराज ! मैं भी अपनी जाति की प्रजा का राजा हूं। मुझे उसका पालन-पोषण करना होता है। सदस्यों में मामले निपटाने होते हैं। उसका न्याय करना होता है। आज एक ऐसा ही मामला सामने आ गया था, उसे निपटाने में समय लग गया। दो सूए लड़ते-झगड़ते मेरे समक्ष आए। मैंने उनके विवाद का कारण पूछा। एक सूए ने कहा-राजन् ! हम दोनों में 'मलद्वार' के विषय में विवाद हुआ। मैंने कहा-मलद्वार अधिक हैं और मुखद्वार कम हैं। यह कहता है कि मलद्वार उतने ही हैं जितने मुखद्वार। कम या अधिक नहीं हैं। शुकराज बोला-राजन् ! यह जटिल प्रश्न था। पर मैंने अपने बुद्धिबल से उसे निपटा दिया, उसका समाधान दे दिया। राजा की जिज्ञासा बढ़ी। उसने पूछा-कैसे निपटाया ? सुनाओ। शुकराज बोला-राजन् ! जिनके मलद्वार हैं उनके मुखद्वार हैं और जिनके मुखद्वार हैं उनके मलद्वार हैं। किंतु ऐसे आदमी भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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