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निषेधात्मक भाव
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साधना को छोड़ दो। इससे कुछ भी होना-जाना नहीं है।' चूलनीपिता शांत और सहज बैठा रहा। देव ने दो-तीन बार कहा । पर चूलनीपिता मौन और शांत । देव फिर बोला-सुन नहीं रहे हो ? छोड़ दो ध्यान को। साधना को तिलाञ्जलि देकर चले जाओ यहां से। अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हें उसका अनिष्ट परिणाम भुगतना होगा। परिणाम बहुत भयंकर होगा। उठो, चले जाओ अपने घर । चूलनीपिता पूर्ववत् अडोल, अप्रकंप और अविचल बैठा रहा। देव बोला-तुम नहीं मानते हो तो लो, मैं अभी तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को तुम्हारे सामने लाकर मारता हूं। उसके टुकड़े-टुकड़े कर कड़ाई में तलता हूं और उस पुत्र को चूनलीपिता के समक्ष मारा, टुकड़े-टुकड़े कर कड़ाई में तला और फिर उसके रक्त से चूलनीपिता के शरीर को सींचा।
इतना होने पर चूलनीपिता अविचलित रहा। वह अपनी ध्यान साधना में लगा रहा।
देव बोला-'बड़े ढीठ हो, निर्दयी और निर्मम हो। एक ओर धार्मिक आराधना का ढोंग कर रहे हो और दूसरी ओर करुणा का स्रोत सूखता जा रहा है। धार्मिक वह होता है, जिसमें करुणा होती है। बेटा तड़प-तड़प कर मर रहा है और तुम इतने निर्दयी हो, उसको बचाने के लिए भी नहीं उठ रहे हो। अच्छा, अब भी मान जाओ। अन्यथा मैं तुम्हारे दो और पुत्रों की भी वही दशा करूंगा, जो पहले पुत्र की है। छोड़ दो धर्म-कर्म को। पुत्र की रक्षा करो।'
चूलनीपिता पर इसका कोई असर नहीं हुआ। देव ने मंझले लड़के को उसके सामने मारा, टुकड़े-टुकड़े किए, कड़ाहे में तला और रक्त से चूलनीपिता के शरीर को सींचा।
पर चूलनीपिता का एक रोम भी नहीं हिला। देव ने कनिष्ठ पुत्र की भी वही दशा की। पर चूलनीपिता पूर्ववत् धर्म में लगा रहा।
तीनों पुत्रों की हत्या हो गई। देव निराश हो गया। चूलनीपिता का एक रोम भी प्रकंपित नहीं हुआ। देव खिसिया गया। उसने अन्त में कहा-'चूलनीपिता ! नहीं मानते हो तो अब मैं तुम्हारी माता भद्रा को घर से निकाल कर लाता हूं और तुम्हारे सामने उसके टुकड़े-टुकड़े कर कड़ाहे में तलता हूं।'
चूलनीपिता ने सुना। उसने सोचा-यह दुष्ट और अनार्य पुरुष कुछ भी कर सकता है। मेरे तीनों पुत्रों की इसने हत्या कर डाली। अब मेरी मां को भी मार डालेगा। मां के प्रति ममता उभर आयी। स्नेह उमड़ा, भीतर का इन्द्रासन डोल गया, ध्यान का आसन डोल गया। वह साधना को छोड़ उस
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