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कैसे सोचें ?
दुष्ट पुरुष को पकड़ने दौड़ा। पुरुष आकाश में उड़ गया। घर के सब लोग दौड़े-दौड़े आए। न पुत्रों की हत्या हुई थी। न मां को मारने की किसी ने तैयारी की थी। न कड़ाह था न मांस था, कुछ भी नहीं था। सारी देवमाया थी।
इस घटना की पौराणिक व्याख्या यह हो सकती है कि देव आया और उसने वैसा घटित किया। ध्यान या योग के संदर्भ में इसकी यह व्याख्या हो सकती है-वहां न कोई देव था, न और कुछ था। व्यक्ति के अपने निषेधात्मक भाव जागे और उन भावों ने एक मायाजाल रचा कि उस मायाजाल में तीनों लड़के सामने मारे गए, तले गए, भाता भद्रा की बात भी आई आदि-आदि। जब निषेधात्मक भावों का तांता समाप्त हुआ और जैसे ही ध्यान टूटा सब कुछ समाप्त हो गया, कुछ भी नहीं रहा।
इस दुनिया में जीने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिंसा और मारकाट से परिचित है, हत्या और आत्महत्या से परिचित है। वह चोरी, डकैती और अपराध को जानता है। वह सभी प्रकार की उपद्रवी और अपराधी मनोवृत्तियों को जानता है। ये सारी घटनाएं स्मृति में अंकित रहती हैं। अनेक घटनाएं आदमी स्वयं भोगता है और अनेक घटनायें वह सुनता है-सबकी स्मृतियां अंकित हो जाती हैं। एक जन्म की नहीं, अनेक जन्मों की स्मृतियों को आदमी संजोए रहता है। ये अंकन भाव-शरीर में होते हैं। जब आदमी बाहरी चेष्टाओं और प्रवृत्तियों से उपरत होकर एकाग्र होता है तब ये भीतरी स्मृतियां उभरती हैं, साक्षात् होने लगती हैं। कौन व्यक्ति ऐसा है जिसने जीवों को न मारा हो, हत्याएं न की हों ? कौन व्यक्ति ऐसा है जिसने झूठ न बोला हो, कपट और मायाजाल न रचा हो ! कौन व्यक्ति ऐसा है जिसने चोरियां, डकैतियां, लूटपाट या अन्य अपराध न किए हों ? प्रत्येक व्यक्ति ने किए हैं, इस जन्म में नहीं तो अतीत के अनन्त जन्मों में तो किए ही हैं। इन प्रवृत्तियों के सूक्ष्म संस्कार हमारे भाव-शरीर में चिपके हुए हैं। वे पढ़े नहीं जा सकते, देखे नहीं जा सकते। जब आदमी ध्यान की अवस्था में होता है तो ऊष्मा बढ़ती है। उस ऊष्मा की आंच में वे सूक्ष्म अंकन पिघल कर स्थूल बनते हैं, स्थूल लिपियों में उभरते हैं तब ऐसा लगता है कि कोई देव आकर सता रहा है, कोई राक्षस या पिशाच आकर पीड़ित कर रहा है। अजीब-अजीब दृश्य सामने आते हैं और तब आदमी घबड़ा जाता है।
आयुर्वेद का सिद्धांत है कि प्रात:काल उठते ही ओंकार का जप करना चाहिए। प्रत्येक धर्म संप्रदाय कहता है कि उठते ही भगवान् का नाम स्मरण करना चाहिए। आत्मवादी दर्शन कहते हैं कि उठते ही आत्म-चिन्तन या
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