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कैसे सोचें ?
उस घर में पुत्र का जन्म हुआ है। उसकी खुशी में बाजे बजाए जा रहे हैं।'
दूसरा दिन उगा। पड़ोस में करुण क्रन्दन हो रहा था। थावच्चापुत्र ने मां से कहा-'मां ! कल जो गीत गाए जा रहे थे, वे कानों को प्रिय लगते थे। आज जो गीत गाए जा रहे हैं, कर्णकटु और अप्रिय हैं। ऐसा क्यों है मां ?'
मां ने कहा-बेटा ! आज गीत नहीं गाए जा रहे हैं। घर में क्रन्दन हो रहा है, लोग रो रहे हैं, विलाप कर रहे हैं। उसने कहा-'मां ! यह अंतर क्यों! कल सुहावने गीत गाए जा रहे थे और आज कानों को अप्रिय लगने वाले गीत गाए जा रहे हैं ? यह भेद क्यों?'
मां ने कहा-'बटा ! कल बालक जन्मा था। उस खुशी में खुशी के गीत गाए जा रहे थे। सबके मन में उल्लास था, प्रसन्नता थी। आज वह बच्चा मर गया। सब रो रहे हैं, विलाप कर रहे हैं।'
'मां ! कल जन्मा और आज मर गया ? मां ! क्या मैं भी मरूंगा ?'
मां बोली- बटा ! यह संसार है। इसका शाश्वत नियम है कि जो जन्मता है वह मरता है। यहां कोई अमर नहीं रहता।'
थावच्चापुत्र बोला-'मां ! यदि ऐसा है तो मैं मरने की दुनिया में रहना नहीं चाहता। मैं अब अमर होने की दिशा में प्रस्थान करना चाहता हूं।'
थावच्चापुत्र मुमुक्षु और अमर होने की दिशा में प्रस्थित हो गया।
क्या मरने या रोने की गीत सुनकर सभी अमर होने की दिशा में प्रस्थान कर देते हैं ? ऐसा नहीं होता है।
इन सार संदर्भो से यह सचाई स्पष्ट हो जाती है कि बाहरी परिस्थिति होने पर भी आन्तरिक परिस्थिति सबकी समान नहीं होती। आन्तरिक परिस्थितियों का अन्तर ही व्यक्ति-व्यक्ति में अन्तर पैदा करता है और इस भिन्नता के कारण ही सबके रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं। कुछ लोग हिंसा की ओर मुड़ जाते हैं और कुछ लोग अहिंसा की ओर मुड़ जाते हैं। अहिंसा की परिस्थितियों में पलते हुए भी कुछ लोग हिंसा के वातावरण में चले जाते हैं और कुछ लोग हिंसा की भीषण परिस्थितियों में पलते हुए भी अहिंसा के वातावरण में चले जाते हैं।
बाहरी परिस्थिति की समानता और आन्तरिक परिस्थिति की असमानता-इन दोनों के विश्लेषण के आधार पर हृदय-परिवर्तन की समस्या का समाधान खोजा जा सकता है। आयुर्वेद में दो प्रकार की औषधियों का विधान है-शोधक और शामक । कोई रोग उत्पन्न हुआ है। शोधन से वह रोग समाप्त हो जाता है। शोधन की एक निश्चित प्रक्रिया है। उससे अनेक रोग मिट जाते हैं। शोधन की प्रक्रिया के तीन अंग हैं-वमन, विरेचन और
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