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________________ हृदय परिवर्तन के प्रयोग १६३ स्वेदन। इनसे दोष बाहर निकाला जाता है। वमन से दोष बाहर निकलते हैं, विरेचन से दोष बाहर निकलते हैं और स्वेदन-पसीने से दोष बाहर निकलते शोधन की प्रक्रिया रोग के उन्मूलन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इससे फिर रोग के आक्रमण की आशंका नहीं रहती। दूसरी प्रक्रिया है-शमन की। कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनमें शोधन इतना अपेक्षित नहीं रहता। वे दोष शमन के द्वारा शांत हो जाते हैं, दब जाते हैं। यदि पित्त की उग्रता होती है तो उसका शमन घी से कर दिया जाता है। गिलोय, गडूची आदि शामक औषधियां हैं। इनसे दोष बाहर नहीं निकलता पर भीतर ही भीतर शांत हो जाता है। शरीर के तीन दोष माने जाते हैं-वात, पित्त और कफ। वैसे ही मन के भी तीन दोष हैं-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या-ये तीन प्रकार के मनोभाव हमारे मन के तीन दोष हैं। सांख्य दर्शन की भाषा में रजोगुण और तमोगुण-ये मन के दो दोष हैं। इन मानसिक दोषों का शोधन भी होता है और शमन भी होता है। इनके साथ विलय की बात मैं और जोड़ देना चाहता हूं। आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करने पर तीन बातें फलित होती हैं-दोषों का शोधन, दोषों का शमन और दोषों का विलयीकरण या क्षयीकरण। शमन या शांत किए गए दोष फिर उभर सकते हैं, पर क्षीण किए गए दोष कभी नहीं उभर सकते। ___ हम हृदय-परिवर्तन के लिए मानसिक दोषों का शोधन करना सीखें । उसकी युक्ति को हस्तगत करें। हमें हिंसा की चेतना को बदलना है। कैसे बदलेंगे ? यह हमने सिद्धान्त रूप में स्वीकार कर लिया कि चंचलता को मिटाने का अभ्यास करने पर चेतना बदल जाती है। प्रश्न वही आएगा कि चंचलता को मिटाने की युक्ति क्या है ? जब हम युक्ति की बात करते हैं तो हमें बहुत गहरे में जाना होगा। हमारे समक्ष अनेक सचाइयां होती हैं, पर हम उन सारी सचाइयों को जान ही नहीं पाते और अपने आचरण की व्याख्या भी नहीं कर पाते। एक बार पत्नी अपने प्रियतम को पत्र लिखने बैठी। वह एकान्त और अकेलेपन से ऊब चुकी थी। प्रियतम को घर से गए छह महीने हो गए थे। यह भावावेश में थी। आंखें डबडबा आईं। वह पत्र लिखने बैठी। हाथ में कलम है। पन्ने पर लिख रही है। आंखों से आंसू पन्ने पर गिर रहे हैं। अत्यन्त एकाग्र है। अपने भावों को अक्षरों में उतारती गई। संयोग ऐसा बना की उसी समय, उसी क्षण उसका पति परदेश से लौट आया। उसने अपनी पत्नी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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