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________________ हृदय परिवर्तन के सूत्र (३) १४९ अनुभव नहीं हो सकता। यह अनुभव अभ्यास और प्रयोग के द्वारा ही हो सकता है। जिस व्यक्ति ने प्रयोग किया है ध्यान का, जिस व्यक्ति ने भीतर की गहराइयों में जाने का अभ्यास किया है, वही व्यक्ति जान सकता है कि भीतर में कितना आनन्द है! कैसा आनन्द है ? उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। जब तक इस आकर्षण का परिवर्तन नहीं होता, तब तक चंचलता बढ़ती रहेगी। चंचलता क्यों बढ़ती है ? इसीलिए कि भीतर से करन्ट आ रहा है। पंखा घूम रहा है तेज । क्यों घूम रहा है ? इसीलिए कि करन्ट आ रहा है। जब स्विच ऑन होता है और करन्ट आता है तो पंखा बेचारा घूमेगा ही। मन तो बेचारा घूमेगा ही। वह कैसे रुकेगा? इस वस्तु-जगत् का इतना तेज धक्का लगता है कि बेचारे मन को चक्कर लगाने पड़ते हैं। मन इसीलिए चक्कर लगा रहा है कि आकर्षण का धक्का उसे लग रहा है। वस्तु का आकर्षण-यह चाहिए, वह चाहिए, का ऐसा तेज धक्का लगता है कि बेचारा मन दौड़ता-फिरता है, चक्कर लगाता फिरता है। इस आकर्षण की दुनिया में बड़ी अजीब स्थितियां पैदा हो जाती हैं। पुराने जमाने की एक घटना है। एक नट नाच कर रहा था। बड़ा कुशल था। नाम था इलायचीकुमार। था कोई श्रेष्ठिपुत्र। बड़ा धनाढ्य । किन्तु आकर्षण ही तो सब विकृतियां पैदा करता है। वह एक नट-कन्या के प्रति आकृष्ट हो गया। आकर्षण जुड़ गया। घर छोड़ दिया। परिवार छोड़ दिया। संपत्ति छोड़ दी। वह नटों के साथ रहने लगा। नट बन गया। बड़ा कुशल नट बना। नाटक करने राजसभा में गया। राजा बैठा है। पूरी परिषद् बैठी है। सभी जुड़ी हुई है। नाटक करना है। इलायचीकुमार बांस पर चढ़ा। उसने ऐसे करतब दिखाए कि सारी सभा मुग्ध हो गई। राजा नाटक नहीं देख रहा था। राजा का ध्यान नीचे खड़ी नट-कन्या के प्रति चला गया। वह भी आकृष्ट हो गया। उसका आकर्षण वहां जुड़ गया। सारे लोग तालियां बजा रहे थे। वाह ! वाह! साधुवाद ! धन्यवाद ! आवाजें निकल रही थीं। सबका आकर्षण था इलायचीकुमार के प्रति, किन्तु राजा का आकर्षण था उस नट-कन्या के प्रति। राजा ने सोचा-जब तक यह नट है तब तक यह नट-कन्या मुझे नहीं मिल सकती। यह मर जाए तभी प्राप्त हो सकती है। पूरा एक प्रहर तक नाटक किया। बांस पर, रस्सियों पर, पतले-पतले धागों पर इतना भयानक करतब किया कि आदमी के पल-पल में मरने की आशंका होती है। बड़ा कुशल था। शरीर सधा हुआ था। वह नीचे उतरा। उसने सोचा राजा बहुत प्रसन्न होगा। दान मिलेगा। राजा के सामने आया। राजा बोला-'नट ! तूने करतब तो दिखाए पर मुझे अच्छा नहीं लगा, सन्तोष नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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