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________________ १४० कैसे सोचें ? है। कार्य की सफलता का सूत्र है-निकम्मा हो जाना। वास्तव में ही निकम्मा हो जाना। __नदी के पार कुछ लोग आए। नौका को छोड़ा और पूछा, गांव कितनी दूर है ? लोगों ने बताया-चार मील। दो आदमी थे। एक के पास तो घोड़ा था, एक को पैदल चलना था। एक आदमी ने पूछा-भई ! सांझ तक पहुंचना है, पहुंच जाएंगे ? बहुत समझदार आदमी था जिससे पूछा गया। उसने कहा-'धीमे-धीमे चलोगे तो पहुंच जाओगे।' अब जिसके पास घोड़ा था वह धीमे क्यों चलता ? जिसके पास घोड़ा नहीं था वह धीमे चलने लगा। जिसके पास घोड़ा था वह तेज दौड़ने लगा। चार माइल का रास्ता, ऊबड़-खाबड़ पथरीला, कंटीला, झाड़-झंखाड़ और बीच-बीच में दलदल वाला। कीचड़, बहुत कीचड़। घोड़ा बहुत तेज दौड़ने लगा और आदमी जो पैदल था धीमे-धीमे संभल-संभल कर चलने लगा। घोड़ा तेज रफ्तार से दौड़ा जा रहा है। चलते-चलते ऐसा दलदल आया कि घोड़े के पैर फिसले, घोड़ा गिरा, आदमी गिरा और उसी दलदल में उलझ गया। जो पैदल चल रहा था वह बहुत संभल-संभल कर धीमे-धीमे चल रहा था, सांझ होते-होते अपने गांव पहुंच गया और घोड़े वाला दूसरे दिन सूर्योदय तक भी नहीं पहुंच पाया। गणित की भाषा तो यही है कि जिसके पास तेज गति वाला घोड़ा है वह तो चार माइल, दस-बीस मिनट, आधा घंटे में पहुंच जाएगा। जो आदमी पैदल चल रहा है उसे तो चार माइल पहुंचने में घंटा भर भी लग जाएगा। हम गणित की भाषा में सोचें तो घोड़े वाला पहले पहुंचेगा और पैदल चलने वाला बाद में पहुंचेगा, किन्तु हमारे जीवन की भाषा में सब जगह गणित नहीं चलता। गणित भी बहुत बार व्यर्थ हो जाता है। यथार्थ की भाषा में देखा जाए तो धीमे-धीमे चलने वाला तो पहुंच जाता है, और बहुत तेज चलने वाला लड़खड़ा जाता है, बीच में ही रुक जाता है। कोरा काम करने की बात है, कोरी चंचलता की बात है वह गणित की भाषा में तो समस्या का समाधान लगती है किन्तु यथार्थ यह है कि जिस व्यक्ति ने चंचलता को कम करना नहीं सीखा, जिस व्यक्ति ने संभल-संभल कर चलना नहीं सीखा, उसके रास्ते में ऐसे अवरोध आते हैं कि वह लड़खड़ा जाता है और बीच में नई-नई समस्याएं पैदा कर लेता है। एक के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी समस्या। समस्या का ऐसा लंबा जाल हो जाता है कि वह बीच में ही लटकता रह जाता है। चंचलता को कम करना, लगता है कि निकम्मापन है, पर कार्य की सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है यह। जिस व्यक्ति ने अपनी चंचलता को कम किया है वह कार्य में ज्यादा सफल हुआ है। दस घंटा का काम पांच घंटे में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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