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________________ हृदय परिवर्तन के सूत्र ( २ ) १३९ होनी चाहिए । हृदय बदलना चाहिए, पर हृदय बदलेगा कैसे ? आपने चंचलता कम करने के लिए कोई अभ्यास ही नहीं किया, चंचलता को मिटाने का कोई प्रयोग ही नहीं किया तो हृदय कैसे बदल जाएगा ? क्या कोरी बातें सुनते-सुनते हृदय बदल जाएगा? अगर बातें सुनते-सुनते, सिद्धांतों की चर्चा करते-करते हृदय बदलता तो आज सारा संसार अहिंसक बन जाता और सारी समस्याएं समाधान पा लेतीं, पर ऐसा होता नहीं है । यह हमारा मोह है, भ्रम है कि केवल सिद्धांत और तत्त्व चर्चा के आधार पर हृदय बदलना चाहते हैं और हिंसा से अहिंसा की प्रतिष्ठापना करना चाहते हैं, किन्तु अहिंसा की प्रतिष्ठा तब तक नहीं हो सकेगी जब तक चंचलता को कम करने का अभ्यास नहीं किया जायेगा । बहुत लोग अहिंसा के विकास की बात सोचते हैं। वे चाहते हैं और हृदय से चाहते हैं कि अहिंसा का विकास हो, आत्मानुशासन का विकास हो, उनकी प्रतिष्ठा बढ़े और सारा संसार अहिंसा और आत्मानुशासन के मार्ग पर चले । उनकी चाह बुरी नहीं है। चाह का अनुमोदन करना चाहता हूं । पर यह बहुत स्पष्ट है कि केवल चाह से, केवल सिद्धांत से न हुआ, न होगा । न भूतम्, न भविष्यति । न अतीत में हुआ, न भविष्य में होगा । हमें एक मार्ग पर चलना होगा । वह मार्ग है- चंचलता को कम करने का मार्ग। पहला मार्ग या साधन है - चंचलता को कम करने का अभ्यास । कुछ लोग कहते हैं, ध्यान से क्या होना-जाना है ? कोई काम करें। ध्यान से क्या होगा ? बहुत अच्छी बात है, ध्यान से कुछ भी नहीं होगा। क्योंकि प्रत्यक्षत: हमें यही दीखता है । करते तो कुछ भी नहीं, कोई उत्पादक श्रम नहीं, न रसोई बनाते हैं, न कपड़ा बुनते हैं, न और कोई काम करते हैं। कोई श्रम तो नहीं करते। केवल एक घंटा भर बैठ जाते हैं, निकम्मे ही तो ठहरे ! काम कहां रहा ? आखिर निकम्मे ही रहे। तो सहज ही प्रश्न होगा, ये लोग निकम्मे बैठे क्या कर रहे हैं ? काम तो वे लोग करते हैं जो मजदूर हैं, कड़ी धूप में श्रम कर रहे हैं। काम वे लोग करते हैं जो ऑफिस में बैठे हैं और पांच, सात, आठ घंटा लेखनी चलाते रहते हैं। ध्यान करने वाले तो कुछ भी नहीं करते । चंचलता काम है और अचंचलता निकम्मापन है, स्थिर होकर बैठना निकम्मापन है। जब तक इस मिथ्या दृष्टिकोण का निरसन नहीं होगा तब तक समाज की समस्या का समाधान नहीं होगा । हमें सत्य को खोजना होगा । सत्य को खोजे बिना, सत्य को उपलब्ध किए बिना हमारी समस्याएं नहीं सुलझ पाएंगी। सत्य यही है कि हमारे जीवन में निकम्मेपन का और काम करने का संतुलन होना चाहिए । निकम्मा बैठना, चंचलता को कम करना, यह काम करने का सबसे बड़ा सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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