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________________ १३८ कैसे सोचें ? तक क्रियान्वित नहीं होता जब तक चंचलता कम नहीं हो जाती। कोई भी समस्या तब तक समाधान नहीं पा सकती जब तक हमारी चंचलता कम नहीं हो जाती। उस भूमिका के लिए आज बात नहीं कर रहे हैं जहां पूर्ण स्थिरता प्राप्त हो जाती है। एक वर्ष तक हिले-डुलेंगे नहीं, प्रतिमा की भांति, बाहुबली जैसे एक वर्ष तक कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े रहे, वैसे के वैसे खड़े हो जाएंगे, फिर चाहे आंधी आए, तूफान आए, वर्षा आए, सर्दी हो, गर्मी हो, चाहे लताएं उग जाएं और चाहे पक्षी घोंसला बना लें, हम तो खड़े के खड़े रहेंगे अडोल मूर्ति की भांति । यह असंभव कल्पना होगी। हर आदमी बाहुबली नहीं हो सकता, उतना स्थिर नहीं हो सकता। हम यह प्रयत्न नहीं कर रहे हैं कि मन बिलकुल समाप्त हो जाए, अमन बन जाए। अमन बनना तो अच्छा है। उर्दू की शब्दावली में अमन बहुत अच्छा है, और संस्कृत की शब्दावली में भी अमन होना बड़ा अच्छा है। मन न होना, मन समाप्त हो जाना, किन्तु बड़ी मुश्किल हो जाएगी अगर अभी आप अमन बन जाएं। यदि अमन बन जाएं तो शिविर के बाद कोई स्थिति नहीं होगी। न सोच सकेंगे. न कल्पना कर सकेंगे, न याद कर सकेंगे। न पत्नी की याद होगी, न घर की याद होगी, न रास्ते की याद होगी। सारी यादें समाप्त। अमन होना कोई सहज साधना नहीं है, बड़ी कठिन साधना है। अगर हो जाए तो सारी जीवन की धारा बदल जाती है। गृहस्थी में रहने वाला तो बड़ी कठिनाई का अनुभव करने लग जाता है। मन ही समाप्त हो गया, फिर क्या करें ? थोड़ी स्मृति कम होती है तो चिन्ता हो जाती है कि याद बहुत कम रहती है। बड़ी परेशानी होती है। तो भला, पूरा अमन बन जाए तब तो परेशानी का पहाड़ हो जाएगा। बड़ी कठिनाई है। न अवाक् , न अमन और न अशरीर । तीनों संभव नहीं हैं। फिर भी हम प्रयत्न करते हैं। हमारा पुरुषार्थ सारा का सारा इस दिशा में लग रहा है। सब काम छोड़कर यहां बैठे हैं और सारी प्रक्रिया इस दिशा में चल रही है कि मन की चंचलता कम हो, वाणी की चंचलता कम हो, शरीर की चंचलता कम हो। कायोत्सर्ग का अभ्यास, मौन का अभ्यास और एकाग्रता का अभ्यास-यह हृदय-परिवर्तन का पहला सूत्र है। हम बहुत बार कहते हैं कि हृदय-परिवर्तन होना चाहिए। दण्ड-शक्ति का प्रयोग नहीं होना चाहिए, बल का प्रयोग नहीं होना चाहिए, हृदय बदलना चाहिए। हृदय को बदले बिना समस्या का समाधान नहीं होता। हृदय-परिवर्तन की बात तो बहुत करते हैं। सैद्धान्तिक चर्चा में हमारा रस है पर क्या यह संभव है ? प्रयोग किए बिना, अभ्यास किए बिना, हृदय बदल जाएगा ? लोग मानते हैं. हिंसा से कछ नहीं होना-जाना है। हिंसा बहत खराब है। अहिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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