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हृदय परिवर्तन के सूत्र (१)
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के हो सकते हैं । जितने भावों के स्राव, उतने ही रसायनों के स्राव । दोनों बराबर होंगे, कोई अन्तर नहीं होगा । रसायनों का परिवर्तन करने के लिए परिवर्तन करना होता है, विचारों का और विचार का परिवर्तन करने के लिए परिवर्तन करना होता है भावों का । जब भाव - परिवर्तन की कुंजी हमारे हाथ लग जाती है तो आन्तरिक परिवर्तन की दिशा में हमारा प्रस्थान तीव्र गति से होने लग जाता है ।
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प्रश्न है भाव को कैसे बदलें ? यह बहुत बड़ा प्रश्न है । परिवर्तन की बात मैंने कह दी और शायद सब लोग भी कहते हैं कि विचारों को बदलो । भावों को बदलो । आखिर कैसे बदलें प्रश्न तो यह है । यह कहना तो बहुत सरल बात है कि आप अच्छे आदमी बनें, ईमानदार बनें । प्रामाणिक बनें । सच्चे आदमी बनें। बड़े प्रसन्न रहें । अच्छे सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना इतना सरल है कि उतना सरल तो रोटी बनाना भी नहीं है। रोटी बनाने में तो बहुत दिक्कते हैं । बहिनों से पूछा जाये कि रोटी बनाना कितना कठिन होता है ? बहुत जटिल काम है रोटी बनाना । भावों का परिवर्तन करें, यह कहना तो बहुत सरल है । सिद्धान्त का प्रतिपादन कम्प्यूटर और टेपरेकार्ड भी कर सकता है । दोहराना है। कठिनाई क्या होगी ? लिखा है, पढ़ा है दोहराना है । बहुत सरल बात है, किन्तु परिवर्तन कैसे करें, यह एक जटिल प्रक्रिया है । बहुत महत्त्वपूर्ण बात तो यही है कि परिवर्तन आखिर कैसे करें ? वहां हमें आन्तरिक परिस्थिति में जाना होगा। जब रसायनों को बदलना है, अन्त:स्रावी ग्रन्थियों के रसायनों को बदलना है, जो हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं तो हमें एक प्रक्रिया में से गुजरना होगा। वह एक अनुस्यूत प्रक्रिया कहा जाता है। आश्रव को बदले बिना भावों को नहीं बदला जा सकता। पुरानी भाषा समझने में कठिनाई होती है। दो हजार, तीन हजार वर्ष के बाद भाषा और शब्द इतने बदल जाते हैं कि उसमें छिपा हुआ तत्त्व हमारी पकड़ में नहीं आता, समझ में नहीं आता । आदमी वर्तमान की भाषा से बहुत परिचित होता है। वर्तमान की शब्दावली का अर्थ उसे ज्ञात होता है । वह उसे सहजता से पकड़ सकता है। पुरानी बात सीधी पकड़ में नहीं आती। यही तो करना होता है। ध्यान के द्वारा हमें यही तो खोजना होगा कि पुरानी शब्दावली में जो सत्य खोजा गया था और बताया गया था उस सत्य को आज की भाषा में कैसे ढाल सकें, कैसे पकड़ सकें और कैसे प्रस्तुत कर सकें । यह स्पष्ट है कि ध्यान एक बहुत बड़ा माध्यम है खोज का, अन्तर की खोज का, छिपे हुए तत्त्व के प्रकाशन का । जो बात छिप गई, गूढ़ बन गई, गुप्त हो गई, उस गूढ़ बात को गूढ़ता से ही खोजा जा सकता है, गुप्ति को गुप्ति से ही खोजा जा सकता है। यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है कि गुप्ति की खोज गुप्ति से ही
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