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कैसे सोचें ?
बात हो गई कि पहले बेटा जन्म लेता है और फिर बाप जन्म लेता है। पहले बेटा जन्मेगा और फिर बाप जन्मेगा ? यह कैसे संभव होगा? भाव विचार को पैदा करता है। विचार भाव को कैसे पैदा करेगा ? भाव हमारे अन्ततम से आने वाला एक स्रोत है। भीतर से आता है। अच्छा भाव, बुरा भाव, कृष्ण लेश्या का भाव, तेजोलेश्या का भाव और शुक्ल लेश्या का भाव। यह भीतर से आता है। जिस प्रकार का भाव होता है मन को वही भाव मिलता है और वैसा ही विचार होने लग जाता है। भाव जनक है विचार का, न कि विचार जनक है भाव का। पर गहराई में गये बिना, बहुत बार ऐसा होता है कि कभी-कभी गलत स्थापनायें भी हम प्रस्तुत कर दिया करते हैं। जब भाव बदलेगा, अन्ततम बदलेगा तो फिर विचार भी बदलेगा, मन भी बदलेगा और मन बदलता है तो आन्तरिक रसायन भी बदलते हैं। रसायनों को बदलने के लिए भावों को बदलना और मन को बदलना, यानी विचारों को बदलना बहुत जरूरी होता है। तीनों का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। पीनियल ग्लैंड से, पिच्युटरी ग्लैड से एक प्रकार का रसायन स्रावित हो रहा है। अगर हम भाव का परिवर्तन कर देते हैं तो दूसरे प्रकार का स्राव होने लग जाता है। अगर हम विचार का परिवर्तन करते हैं तो दूसरे प्रकार का स्राव होने लग जाता है। यह न मानें कि सभी ग्रन्थियां व्यक्ति में होती हैं। हर व्यक्ति के पास एड्रीनल है, थाइरॉयड है, पिच्युटरी है, पीनियल है, गोनाडस् है। ग्रन्थियां तो सब एक प्रकार की हैं, पर इनके स्राव एक प्रकार के नहीं होते। हर व्यक्ति के भिन्न-भिन्न प्रकार के स्राव होते हैं। उनसे व्यक्ति का भाव बदलता है, विचार बदलता है। एक व्यक्ति का स्राव दूसरे व्यक्ति से मिलता नहीं है। दो व्यक्तियों के स्राव तो भिन्न होते ही हैं, एक व्यक्ति के स्राव भी भिन्न हो जाते हैं। भगवान् महावीर ने लेश्या के सिद्धान्त में एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रतिपादन किया-'असंखेज्जाइं ठाणाई-लेश्या के असंख्य स्थान होते हैं। एक दो नहीं, हजार नहीं, लाख और करोड़ नहीं, अरब और खरब नहीं, असंख्य। जहां संख्या समाप्त हो जाती है, इतने स्थान होते हैं, इतने उतार-चढ़ाव होते हैं। असंख्य उतार और चढ़ाव। हम जितने प्रकार के भाव करेंगे, हमारे स्राव भी उतने हो जायेंगे। जब लेश्या के असंख्य स्थान हैं तो हमारी ग्रन्थियों के रसायन भी असंख्य प्रकार के हो जायेंगे। डाक्टरों ने वर्गीकरण किया है, उनकी गिनती की है कि पिच्युटरी के स्राव कितने होते हैं ? सारी संख्या निर्धारित की है, पर बहुत अधूरी बात है। मेडीकल साइन्स में भी यह माना जाता है कि स्राव इतने ही नहीं होते। महावीर की वाणी में भी यह माना जाता है कि स्राव इतने ही नहीं होते। महावीर की वाणी में ये स्राव असंख्य प्रकार
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