SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ कैसे सोचें ? वातावरण को बदलने का प्रयत्न हुआ है, इसीलिए आदमी गर्मी में सर्दी की स्थिति पैदा कर सकता है। ये सारे पंखे, कूलर इसीलिए तो बने कि सर्दी की परिस्थिति को बदल दिया जाए। यह हीटर इसीलिए तो बना कि सर्दी की परिस्थिति को बदल दिया जाए, गर्मी में सर्दी और सर्दी में गर्मी। मौसम की एकरूपता बना दी जाए। यह सारा विकास बदलने का विकास है। मनुष्य ने बाहरी परिस्थिति को बदलने में काफी प्रयत्न किया है। उसने उसे बदला है और बहुत हद तक सफल भी हुआ है। जिसकी संभावना और कल्पना नहीं थी, उस स्थिति को भी वह बदल चुका है और आगे बढ़ रहा है। दूसरा प्रश्न आता है, आन्तरिक परिस्थिति को बदलने का। बाहरी परिस्थिति के बदलाव में जितनी सफलता मिली है उतनी सफलता आन्तरिक परिस्थिति के बदलाव में अभी नहीं मिली है। रसायनों को बदला जा सकता है। अन्त:स्रावी ग्रन्थियों से जो झरते हैं वे रसायन बदले जा सकते हैं, किन्तु उन्हें बदलने में अभी डॉक्टरों को भी सफलता नहीं मिली है। मेडिकल साइन्स में यह माना गया है कि अन्त:स्रावी के स्रावों में परिवर्तन करने के पर्याप्त साधन अभी उपलब्ध नहीं हुए हैं। उन्हें नहीं बदला जा सकता। भावों को नहीं बदला जा सकता, विचारों को नहीं बदला जा सकता। अभी बड़ी कठिनाइयां हैं। मनुष्य आन्तरिक परिस्थिति को बदलने में अपने आपको अक्षम अनुभव करता है और एक बहुत बड़ा बहाना मिल जाता है कि हम क्या करें ? बुरे विचार आते हैं पर क्या करें यह तो नियति की बात है, बुरे भाव आते हैं, हम क्या करें, हमारे वश की बात नहीं। बुरी कल्पनाएं आती हैं, हमारा कोई वश नहीं। आदमी अपने आपको अवश-सा अनुभव करता है और एक बहाना भी बहुत अच्छा है कि बुरा-अच्छा जो जैसा होता है वैसा नियति से होता है, भीतर की प्रेरणा से होता है, उसमें हमारा तो कोई नियंत्रण नहीं है। क्यों दोष दिया जाये ? एक चोर को क्यों दोषी माना जाए ? एक डाकू को, लुटेरे को क्यों दोषी माना जाए ? वह बेचारा करता क्या है? जैसे उसकी भीतरी प्रेरणा होती है, जैसा उसका भीतर का रसायन होता है वैसा व्यवहार और आचरण उसे करना होता है, तो फिर उसे क्यों दोषी माना जाये ? उसकी विवशता है, उसके वश की बात नहीं है। यह एक बहाना मिल जाता है। और बहाना खोजना तो आदमी बहुत जानता है। बहाना खोजने में तो आदमी इतना सिद्ध-हस्त है कि हर बात में वह बहाना खोज ही लेता है। एक आदमी बैठा था। गांव में मन्दिर बन रहा था सब लोगों ने निर्णय लिया कि मन्दिर बनाना है, पर मजदूरों की जरूरत नहीं। गांव के सब लोग अपना श्रम लगायेंगे और मन्दिर का निर्माण करेंगे। सारा गांव मन्दिर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy