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________________ हृदय-परिवर्तन के सूत्र (१) विश्व का समूचा विकास, सभ्यता और संस्कृति का पूरा विकास, परिवर्तन का विकास है। जो जैसे है वैसे ही रहे तो विकास संभव नहीं होता। मेरे सामने लोग कपड़े पहने बैठे हैं। रूई पौधे पर लगी, रूई बनी, धागा बना और कपड़ा बना। रूई पहने हुये कोई नहीं है। सारा परिवर्तन हुआ है। कच्चा माल सामने आया, पक्का बना। रूई से धागा बना, धागे से कपड़ा बना, तो कपड़े पहने हुये बैठे हैं। अगर रूई को ही पहने होते तो काम बनता नहीं। धागों को तो पहना ही नहीं जा सकता। कपड़े से सर्दी रुकती है, गर्मी का बचाव होता है, आंधी और वर्षा से बचा जा सकता है। इसके पीछे पूरे परिवर्तन की कहानी है। रोटी खाते हैं पर कोरे गेहूं नहीं चबाते। कोरे चने नहीं चबाते, रोटी बनाकर खाते हैं। पूरा परिवर्तन होता है उसके बाद घी खाते हैं, मक्खन खाते हैं। कितना करना पड़ता है ? दूध को जमाना पड़ता है। दही को बिलौना होता है, तब मक्खन मिलता है, घी मिलता है। तो हमारे जीवन की सारी प्रक्रिया, पदार्थ के विकास की सारी प्रक्रिया, परिवर्तन की प्रक्रिया है, बदलाव की प्रक्रिया है। जो जैसे है वैसे नहीं रहता, हर वस्तु को बदलना होता है। __ मनुष्य अपनी परिस्थितियों को बदलता है और वातावरण को भी बदलता है । वातावरण को ऐसे ही नहीं छोड़ देता। परिस्थिति को, जो जैसे है, वैसे ही नहीं छोड़ देता, उसे बदलने का प्रयत्न करता है। मनुष्य का पूरा पुरुषार्थ और पूरा प्रयत्न बदलने में लगा है और वह आगे बढ़ा है। यदि बाहरी परिस्थिति को न बदला जाये तो काफी कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं। मनुष्य ने बाहरी परिस्थिति को बदलने का भी उपक्रम किया है, बाहर के वातावरण को भी बदलने की चेष्टा की है। यदि अन्धकार को नहीं बदला जाता तो प्रकाश उपलब्ध नहीं होता। प्रकाश से रात में भी दिन हो जाता है। रात में भी दिन होता है मनुष्य के पुरुषार्थ के द्वारा और बदलने के द्वारा। मनुष्य ने कितने प्रयत्न किए हैं ! कभी पत्थरों से आग जलाई, कभी अरणी की लकड़ी से आग जलाई और कभी बिजली जलाई। साधनों के परिवर्तनों के द्वारा वह अन्धकार को भी प्रकाश में बदल देता है। अन्धकार एक परिस्थिति है। उस परिस्थिति को बदलने का प्रयास किया, प्रकाश उपलब्ध हो गया। बाहरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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