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________________ १२४ कैसे सोचें ? केवल बाहर ही बाहर झांकता रहता है, वस्तु-जगत् को ही देखता रहता है, वस्तु-जगत् की ही प्रेक्षा करता रहता है वह कभी प्रकाश को उपलब्ध नहीं हो सकता। यदि वस्तु-जगत् की प्रेक्षा से प्रकाश उपलब्ध हो जाता तो फिर श्वास प्रेक्षा या शरीर-प्रेक्षा करने की जरूरत नहीं होती। वस्तु-जगत् की प्रेक्षा में आनन्द है, सुखानुभूति है, आकर्षण है। कभी कुछ और कभी कुछ। आदमी देखते-देखते तृप्त ही नहीं होता। जितना आकर्षण है उसमें, उतना संभवत: ध्यान साधना में नहीं है फिर भी आज का आदमी ध्यान के प्रति आकृष्ट है। इसका फलित यह है कि आदमी वस्तु-जगत् को देखते-देखते मन में इतना ऊब गया है, इतना तनाव-ग्रस्त हो गया है कि बाहर से हटकर भीतर में झांकना चाहता है। बाहरी प्रेक्षा करते-करते आदमी में इतनी जटिलता आ गई है, इतनी मानसिक बेचैनी हो गई कि वह बाहर से हटकर भीतर झांकना चाहता है और इसीलिए वह ध्यान शिविरों में आता है। यहां उसे श्वास-प्रेक्षा, शरीर-प्रेक्षा, अन्तर्यात्राओं की प्रक्रियाओं से प्रक्रियाओं के भीतर झांकने के लिए प्रेरित किया जाता है। जैसे-जैसे वह भीतर जाएगा उसे वह दीखना प्रारंभ होगा जो बाहर की दुनिया में उपलब्ध नहीं था। भीतर में रंग दिखाई देंगे, ऐसे रंग जो बाहरी दुनिया में कभी नहीं देखे । इतना प्रकाश दिखाई देगा, जो बाहर कभी नहीं दिखा। भीतर की दुनिया में झांकते-झांकते ऐसे दृश्य दिखाई देंगे जो डरावने भी हो सकते हैं और सुहावने भी हो सकते हैं। एक बहिन को मैने नासाग्र-ध्यान या प्राणकेन्द्र पर ध्यान का प्रयोग बतलाया। उसने ध्यान प्रारम्भ किया। दो-तीन दिन वह प्रयोग चला। बहिन को आनन्द आने लगा। एक रात वह इस प्रयोग में बैठी थी। ध्यान लम्बा हुआ। रात अन्धेरी थी। ध्यान-काल में भयानक दृश्य सामने आने लगे। उन्हें देखकर वह बहुत भयभीत हो गई। उसका डर सधन होता चला गया। पर वह अविचल बैठी रही। धीरे-धीरे सब शांत हो गया। __ भीतर का जगत् विभिन्न होता है। जब एक-एक कर पट खुलते जाते हैं तब दृश्यों की भरमार से आदमी घबड़ा जाता है। भीतर बहुत दृश्य संकलित हैं। वे एक ही प्रकार के नहीं होते। अनेक प्रकार हैं उनके। भीतर की प्रेक्षा ही वास्तव में प्रेक्षा है। उससे नया प्रकाश मिलता है, नए दृष्टिकोण का निर्माण होता है तथा नए प्रकार का व्यवहार और नए प्रकार का आचरण सामने उपस्थित होता है। हम समाधान खोजें भीतर के प्रकाश में हमारे व्यवहार का, हमारे आचरण का। बाहर में समाधान खोजते-खोजते जो लोग थक गए हैं निराश हो गए हैं वे भीतर में समाधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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