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________________ परिवेश का प्रभाव और हृदय-परिवर्तन ११९ जहां प्राण समाप्त, वहां श्वास भी समाप्त । प्राणधारा के कारण ही सारे शरीर में प्रकम्पन होते हैं, स्पंदन होते हैं। जितने भी वाईब्रेशन्स या मुवमेन्ट्स होते हैं वे सारे प्राणधारा के कारण होते हैं। पहले अभ्यास में श्वास को पकड़ा जाता है और फिर प्राण को पकड़ने का अभ्यास चलता है। श्वास को पकड़ने के लिए जितनी एकाग्रता चाहिए उससे बीस गुनी एकाग्रता चाहिए प्राण को पकड़ने के लिए। अत्यन्त सूक्ष्म है प्राण की धारा । श्वास, शरीर और इन्द्रियों के भीतर काम करने वाली जो सूक्ष्म धारा है वह है प्राणधारा । श्वास का एक प्राण है, इन्द्रिय का एक प्राण है, और शरीर का एक प्राण है। भाषा का एक प्राण है। चिन्तन का एक प्राण है। इन भिन्न-भिन्न प्राणों के भिन्न-भिन्न कार्य हैं। प्राणधारा एक ही है, पर कार्यभेद से उसका नामभेद कर दिया जाता है। जब प्राणधारा इन्द्रियों से साथ जुड़ती है तब वह 'इन्द्रिय प्राण' कहलाता है। प्राण की एक धारा श्वास के साथ जुड़ती है और वह श्वास प्राण बन जाता है। प्राण की एक धारा भाषा के साथ जुड़ती है और वह भाषा प्राण बन जाता है। प्राण की एक धारा मन के साथ जुड़ती है और वह 'मनप्राण' बन जाता है, 'मनोबल' बन जाता है। सारा बल, सारी सक्रियता और सारी शक्ति प्राणधारा के कारण आती है। इस शरीर के भीतर अन्तर के वातावरण में दो मुख्य तत्त्व कार्य निष्पादित करते हैं-विद्युत् और रसायन । मनुष्य के व्यवहार और आचरण की व्याख्या करने के लिए प्राण-विद्युत् और रसायनों को जानना आवश्यक है। प्रत्येक कोशिका विद्युत् पैदा करती है। शरीर की प्रत्येक कोशिका के आस-पास अपना बिजलीघर है। मस्तिष्क में बिजली पैदा होती है। बिजली के बिना मस्तिष्क काम नहीं कर सकता। बिजली के बिना शरीर का कोई अवयव, छोटा हो या बड़ा, काम नहीं कर सकता। सारे शरीर में प्राण-विद्युत् (वायो इलेक्ट्रीसिटी) और रसायन काम करते हैं। मनुष्य की अन्त:स्रावी ग्रन्थियों से स्राव होता है और वह रक्त के साथ मिलकर व्यक्ति को प्रभावित करता है। मनुष्य की संवेगात्मक अवस्थाएं, मानसिक विकास के बिन्दु, व्यवहार की सारी प्रणालियां, सारे व्यवहार और आचार इन रसायनों के द्वारा प्रभावित होते हैं। व्यवहार और आचार को देखकर जाना जा सकता है कि अभी वर्तमान में व्यक्ति किस रसायन से प्रभावित हो रहा है ? कौन रसायन उसे इस प्रकार के आचार व्यवहार के लिए प्रेरित कर रहा है ? जब आदमी में क्रोध जागता है, अहंकार और वासना जागती है तब जान लिया जाता है कि अभी इस स्थिति में व्यक्ति की एड्रीनल ग्लॉण्ड ज्यादा सक्रिय हो रही है। गोनाड्स और थायराइड ग्लॉण्ड अधिक काम कर रही है। सारा व्यवहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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