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________________ ११२ कैसे सोचें? जाता है। व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं-अभाषक और सभाषक। अभाषक जानता है, पर बोल नहीं पाता। सभाषक संवेदन करता है, जानता है और बोल भी लेता है। एक जानवर को कोई चोट मारेगा, वह चिल्ला देगा, चिंचिया देगा, कुछ शब्द करेगा पर कुछ भी कह नहीं सकेगा। एक बिलकुल छोटा प्राणी है चींटी। उसे आप चाहे कितना की कष्ट पहुंचायें वह बोल नहीं सकेगी। हो सकता है, वह इधर-उधर सरक कर टालने का प्रयत्न करे और एक छोटा प्राणी वनस्पति का जीवन है, न तो बोल सकेगा न इधर-उधर जा सकेगा। अपनी संवेदना को प्रकट अवश्य करेगा, किन्तु उसको पकड़ने के लिए हमारे पास कोई दृष्टि नहीं है। किन्तु एक बच्चे को अगर चांटा मारें तो वह रोयेगा, चिल्लायेगा, प्रतिरोध भी करेगा और कह भी देगा कि ऐसा मत करो, ऐसा क्यों करते हो ? मुझे क्यों मारते हो ? क्यों पीटते हो ? वह सब कुछ कह देगा। क्योंकि उसके पास स्पष्ट भाषा है। भाषा है इसलिए वह सोचता है, चिंतन भी करता है। वातावरण से जो पहला सूत्र मिलता है वह है-स्पष्ट भाषा। सामाजिक वातावरण के बिना भाषा नहीं आ सकती। वातावरण के माध्यम से ही हमारी भाषा का विकास होता है। परिस्थितिवाद व्यर्थ नहीं है। परिस्थितिवाद के बिना हमारे विकास की व्याख्या नहीं की जा सकती। मनुष्य की आज तक की सभ्यता, ज्ञान, शिक्षा-इस सारी व्याख्या की पीछे परिस्थितिवाद बहुत बड़ा काम कर रहा है। दो बातें हैं। एक हमारा संवेदन और एक हमारा सीखना। प्राणी में दो बातें हैं। ज्ञान और संवेदन । संवेदन स्वाभाविक है। वह सीखा नहीं जाता। किसी व्यक्ति को चांटा मारा, बच्चे के चांटा मारा, किसने सिखाया था कि दर्द होगा? चांटा मारा और दर्द हो गया। किसने सिखाया ? किसी ने नहीं सिखाया। नाड़ी-संस्थान की ऐसी व्यवस्था है कि कोई बाहर से प्रहार हुआ और दर्द की अनुभूति होने लग जायेगी, संवेदना होने लग जायेगी। यह संवेदना हमारी स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसे सीखना जरूरी नहीं होता। जैसे बच्चे को सिखाया जाता है-एक, दो, तीन, चार। गणना सिखाई जाती है, अंक सिखाये जाते हैं। क्या चीनी मीठी होती है, यह सिखाया जाता है ? सिखाने की जरूरत नहीं। जीभ पर चीनी आयेगी, मिठास का अनुभव होने लग जायेगा। संवेदना सिखाई नहीं जाती। बाहरी ज्ञान सिखाया जाता है। हमारी इन्द्रियों की संवेदना, दर्द की अनुभूति, सुख की अनुभूति, दुःख की अनुभूति-ये सारी बातें सिखाई नहीं जातीं, ये सहज होती हैं। किन्तु ज्ञान सिखाया जाता है। सब पढ़ाया जाता है। दर्शन-शास्त्र पढ़ाया जाता है। सारी विद्याएं पढ़ाई जाती हैं, सिखाई जाती हैं। यदि विद्याओं को पढ़ाने की व्यवस्था न हो, स्वयं ग्रहण की बात हो तो विद्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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