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________________ ११० कैसे सोचें ? विभाग मैंने कर दिया। छह प्रकार की नहीं एक घण्टा में इतना चक्का घूम जाता है कि सौ प्रकार का मन बदल जाता है। कभी-कभी सुबह मन होता है कि आज उपवास करूं तो बहुत अच्छा है। मन होता है उपवास करने का, जैसे ही ग्यारह बजते हैं, रसोई की गन्ध आने लगती है और कोई न्यौता आ जाता है, कोई निमंत्रण दे देता है कि चलो भोजन करें तो वितर्क उठता है-उपवास करना तो था पर आज नहीं कल ही देखेंगे। बस, थाली के सामने आकर बैठ जाता है। मन इतना जल्दी बदल जाता है। यह जो मानसिक अनेकाग्रता, मानसिक परिवर्तनशीलता, मानसिक चंचलता और विविधता का प्रश्न है, वह हमारे लिए एक मोड़ है। यहां से हम अज्ञात की खोज में प्रस्थान कर सकते हैं। यहां एक प्रश्न होता है और उस प्रश्न का समाधान अज्ञात में होता है। यदि सब कुछ ज्ञात मन ही करता तो इतने प्रकार नहीं होते। ज्ञात के सिवाय भी कोई दूसरी दुनिया है और वह है अज्ञात की दुनिया। अज्ञात की दुनिया में जाकर खोजने पर हमारे व्यवहार की व्याख्या हो सकती है। आज के मनोविज्ञान ने इस अज्ञात की खोज कर इसके व्यवहार की व्याख्या की है। एक प्रकार से उसने आत्मा की दिशा में प्रस्थान कर दिया, स्थूल जगत् से सूक्ष्म जगत् की दिशा में प्रस्थान कर दिया। यदि मनोविज्ञान की वह व्याख्या नहीं होती, यह डेफ्त साईकोलोजी' का एक 'कन्सेप्ट' हमारे सामने नहीं होता तो शायद हम केवल ज्ञात दुनिया की बात करते। किन्तु इस अवचेतन मन की मीमांसा ने आदमी को बहुत गहरे में ले जाकर उतार दिया। एक अवधारणा बनी कि आदमी वैसा ही होता है जैसी परिस्थिति होती है। आदमी अपने आपमें कुछ नहीं होता, जैसी परिस्थिति वैसा आदमी। यदि परिस्थिति को काट दें तो आदमी की व्याख्या नहीं की जा सकती। परिस्थिति के माध्यम से मनुष्य की व्याख्या होती है। परिस्थितिवाद हावी हो जाता, यदि अवचेतन मन की अवधारणा हमारे सामने नहीं होती। अवचेतन मन की अवधारणा हमारे सामने है तो परिस्थितिवाद अतिपरिस्थितिवाद नहीं बन पाता। सब कुछ परिस्थिति के कारण होता है, यह हमारी धारणा टूट जाती आदमी परिस्थिति से सीखता है। आदमी का विकास परिस्थिति के आधार पर होता है। सम्राट अकबर ने एक महल बनाया। उसका नाम रखा 'शीश महल' । उसे जंगल में बनाया। अकबर को एक परीक्षण करना था। वहां पांच-दस औरतों को रखा जो गर्भवती थीं। उन्हें कड़ा निर्देश दिया गया कि एक भी माता बोलेगी नहीं। परस्पर बातचीत नहीं करेंगी। कड़ा निर्देश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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