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________________ प्रतिक्रिया से कैसे बचें ? (२) के प्रति निंदा। बुद्धि की भाषा में कहा जा सकता है कि ऐसा करना चाहिए। यह मेरी भाषा नहीं बोल रहा है, बुद्धि की भाषा बोल रहा है कि ऐसा करना चाहिए। नहीं करेगा वह बुद्धिमान आदमी नहीं होगा, मूर्ख होगा । एक व्यक्ति तो ठग रहा है, दूसरा नहीं ठग रहा है, एक तो गाली दे रहा है, दूसरा शांत बैठा है, एक तो क्रोध में आकर ऊपर हावी हो रहा है और दूसरा पीछे खिसक रहा है, तो वह बुद्धिमानी की बात नहीं है । बुद्धिमान आदमी वही होगा कि जो ईंट का जवाब पत्थर से दे । किन्तु मैं जो आपसे कह रहा हूं उसका यदि बुद्धि के स्तर पर लेंगे और बुद्धि के स्तर पर समीक्षा करेंगे तो आपको ऐसा लगेगा कि हमें कोई गलत बात बताई जा रही है, कमजोर बनाया जा रहा है और सामाजिक स्तर पर जीने की कठिनाई पैदा की जा रही है। मैं जो बात कह रहा हूं वह है प्रज्ञा की बात । प्रज्ञा और बुद्धि का स्तर एक नहीं होता । प्रज्ञा अन्तर्दृष्टि है । उसका मानदण्ड भी भिन्न होता है । कसौटियां भी भिन्न होती हैं । उसे बौद्धिक मानदण्डों से कसा नहीं जा सकता, परखा नहीं जा सकता। उसकी तुला भी अलग होती है । उसे बुद्धि की तुला के एक पलड़े में नहीं रखा जा सकता । I प्रज्ञा हमारा अन्तर्दर्शन है। वह भीतर की ओर झांकता है, बाहर की ओर नहीं देखता । प्रज्ञा हमारे दर्शन-केन्द्र की साधना है। जैसे-जैसे दर्शन-केन्द्र जागता है, सक्रिय होता है, प्रज्ञा जागती है, अन्तर्दृष्टि जागती है, चिंतन, निर्णय, निष्कर्ष और धारणाएं बदलती हैं, सारी दुनिया बदल जाती है । दो सगे भाई साथ थे। अलग होने की नौबत आ गई। बंटवारा किया । सभी चीजें बराबर-बराबर बांट दी गईं। दो अंगूठियां बच गईं। एक थी हीरे की अंगूठी और दूसरी थी चांदी की अंगूठी । बड़ा भेद था दोनों में । कहां हीरे की अंगूठी और कहां चांदी की अंगूठी ! बड़ा अंतर था । अब कैसे किया जाए ? अंगूलियों को तोड़ा तो नहीं जा सकता। छोटे भाई ने कहा, यह हीरे की अंगूठी मैं रखूंगा। बड़े भाई ने कहा, मैं रखूंगा । काफी विवाद चला । आखिर बड़े भाई ने सोचा यह अंगूठी चांदी की तो है पर है महत्त्वपूर्ण । छोटा भाई हठ कर रहा है हीरे की अंगूठी के लिए तो उसे वह दे देनी चाहिए। बड़ा भाई बोला- लो, तुम ले लो । यह चांदी की मेरे पास रहने दो। हीरे की अंगूठी कीमती थी, पर चांदी की उससे भी कीमती थी । वह प्रज्ञा की अंगूठी थी । उसमें लिखा हुआ था ये भी बीत जाएंगे ।' अंगूठी ले ली । पांती हो गई। छोटा भाई प्रमाद में फंस गया। वह धन का पूरा उपभोग करने लगा। पूरे वैभव का प्रदर्शन करने लगा । वैभव हो और प्रदर्शन न हो यह तो असंभव होता है । ऐसा भद्दा प्रदर्शन भी कभी - कभी होता है कि दूसरे में प्रतिक्रिया जगा देता है, हिंसा उभार इसे I Jain Education International ९७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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