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आत्मबल : सर्वतोमुखी सामर्थ्य का मूल विभिन्न बलों से लाभ
मनुष्य में अनेक बल निहित हैं। शरीर बल, बुद्धिबल, धनबल, समूह बल, साधन बल आदि । इन बलों के आधार पर साधारण व्यक्ति भी विशिष्ट लाभ प्राप्त कर लेता है। शरीरबल से श्रम करके कमाने, खाने
और पचाने का लाभ मिलता है। बुद्धिबल के आधार पर मनुष्य अधिक जिम्मेदारी के कार्य संभाल सकता है तथा श्रेय साधन पा सकता है। समूह बल के आधार पर साधनहीन लोग भी मिल-जुलकर बहुत-से विशिष्ट कार्य कर गुजरते हैं । संघबल इसका एक ज्वलन्त उदाहरण है। साधनबल के आधार पर अकुशल व्यक्ति भी बुद्धिमानों और अनुभवियों से अधिक सफलता प्राप्त करते देखे जाते हैं । सम्यग दृष्टिविहीन और तपोबल के आधार पर मनुष्य लम्बी तपस्या करके दूसरों को हटा या गिरा सकता है, दूसरों को हानि पहुँचाने या पद भ्रष्ट करने में सफल हो सकता है, दूसरों को नीचा दिखाने या बदनाम करने में भी सफलता प्राप्त कर सकता है । ये सारे चमत्कार शक्ति के हैं। आत्म-बल के अभाव में ये सारे बल प्रभावहीन
विभिन्न बलों की साधना विविध क्षेत्रों में अपने-अपने ढंग से की जाती है । भौतिक प्रगति और सुख सुविधा के लिए उपयुक्त बलों का उपयोग किया जाता है। शक्ति के बल पर ही प्रयत्नपूर्वक साधन जटाए जाते हैं और उनके सहारे सुख सुविधा पाने की अभिलाषा पूर्ण करने का प्रयास किया जाता है । परन्तु आश्चर्य यह है कि साधनों का महत्व मानने तथा उन्हें प्राप्त करके अभीष्ट कार्य में सफलता पाने की बात भौतिक स्तर तक ही सीमित रखी जाती है । केवल शरीर की बलिष्टता और साधन संपन्नता
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