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आध्यात्मिक प्रगति के मूलाधार ७७ प्रथम ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तपरूप मोक्ष की आराधना आवश्यक है, इन चारों की साधना में सहायक क्षमादि दशविध उत्तम धर्म, महाव्रत-अणुव्रत, समिति, गुप्ति, कषायविजय, परीषहजय, इन्द्रियदमन आदि का आश्रय लिया जा सकता है। निष्कर्ष यह है कि उसे मोक्षरूप लक्ष्य की आकांक्षा के प्रति समर्पित होकर तदनुकूल सतत निराबाध प्रबल पुरुषार्थ करना चाहिए। तभी आत्मिक प्रगति में यथेष्ट सफलता के दर्शन होंगे।
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