________________
आध्यात्मिक प्रगति के मूलाधार ६९ त्मिक विकास के पथ पर लगा दिया तो उनके व्यक्तित्व (आत्मा) का विकास तो हुआ ही उसके साथ मानसिक-बौद्धिक विकास भी अनायास ही हो गया। उन्होंने अपनी उपलब्धियों का सदुपयोग भी किया और दूसरों को भी आध्यात्मिक विकास के साथ प्राप्त साधनों का सदुपयोग करने की प्रेरणा दी । आध्यात्मिक दृष्टि से निम्न स्तर के लोग गुण, स्वभाव, पुण्य तथा तप-संयम से दीन-हीन होने के कारण धन, बल, ज्ञान, यश आदि से भी वंचित रहते हैं और साधन एवं अवसर रहने पर भी वे उनका यथोचित सदुपयोग नहीं कर पाते । फलतः चिन्ता, कुण्ठा, भीति एवं खिन्नता ही उन्हें अहर्निश घेरे रहती है। आध्यात्मिक दृष्टि से व्यक्तित्व का पिछड़ापन अनेक संकटों और अभावों का अड्डा बन जाता है, जबकि आत्मिक दृष्टि से विकसित व्यक्तित्व के धनी जटिल परिस्थितियों से जूझ कर भी अपने लिए प्रगति का मार्ग बना लेते हैं, और जो साधन एवं अवसर उपलब्ध हैं, उसी का श्रेष्ठतम सदुपयोग करते हुए आत्मिक प्रगति की दिशा में आगे बढ़ते जाते हैं। संसार के आध्यात्मिक प्रगतिशील महामानवों का जीवन इस तथ्य का साक्षी है।
प्राचीन काल में धन, सुविधा और साधन आज की अपेक्षा बहुत कम थे। मोटर, रेल, वायुयान, पूल, रेडियो, वायरलैस, टेलीफोन, टेलोविजन आदि साधन कहां थे? बिजली, भाप, गैस और कोयले आदि से शक्ति उत्पन्न करके लाभान्वित होने की स्थिति भी कहाँ थी ? और कहाँ हुआ था, शिक्षा, चिकित्सा, भौतिक विज्ञान आदि का इतना विकास ? लोकतंत्रीय शासन, शस्त्रास्त्रसम्पन्नता एवं प्रबल सैन्य शक्ति उन दिनों कहाँ थी? इतनी अधिक साधन-सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद वर्तमान काल का मानव अनेक समस्याओं, चिन्ताओं और संकटों के जंजाल में बुरी तरह फंसा हआ है, पिछली पीढियों की तुलना में मानव स्वास्थ्य की दष्टि से क्रमशः गिर रहा है। दुर्बलता, रुग्णता, परवशता आदि गहरी धुसती जा रही हैं। मनुष्यों में पारस्परिक स्नेह, सहयोग एवं सद्भाव में भी अत्यधिक कमी हुई है। फलतः एक-दूसरे को ऊंचा उठाने के बदले सम्पन्न मानव शोषण और उत्पीड़न में ही प्रायः संलग्न है। संसारभर में अपराधी प्रदूत्तियां तेजी से बढ़ रही हैं, वे सामाजिकता की जड़ें खोखली करती जा रही हैं । फलतः अनेकानेक संघर्ष, कलह-क्लेश, बैर-विरोध एवं भयावह समस्याएं उठ रही हैं, जो मनुष्यों को मनःस्थिति को कुत्साओं और कुण्ठाओं से जकड़े हुई हैं । अतः सुख-सुविधा और साधनों की प्रचुरता होने पर भी आज का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org