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१८ तमसो मा ज्योतिर्गमय बालों को भी इसी प्रकार का जीवन जीने की प्रेरणा देता है। फलतः वह आत्मिक प्रगति के साथ-साथ शारीरिक मानसिक विकास तो अनायास ही प्राप्त कर लेता है।
आर्थिक उन्नति की चरम सीमा पर पहुँचे हुए अमेरिका जैसे देशों का वर्तमान स्वरूप हमारे सामने है। वहाँ आर्थिक या भौतिक प्रगति के साथसाथ व्यक्तियों के आध्यात्मिक विकास की ओर ध्यान दिया जाता तो स्थिति ही दूसरी होती। अगर अमेरिकन लोगों ने भौतिक उन्नति के जितनी ही आध्यात्मिक उन्नति को महत्व दिया होता तो, उतने ही साधनों से न केवल वे स्वयं आनन्द का जीवन जीते; अपितु उन्हीं साधनों से दूसरों को भी आनन्दमय जीवन जीने की प्रेरणा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देने में सफल होते।
____ अतएव यह अवश्य विचारणीय है, कि भौतिक साधनों में प्रगति चाहे जितनी हुई हो, उसका उपयोगकर्ता मनुष्य यदि आध्यात्मिक विचार से शून्य है, आत्मिक विकास में अकुशल है तो उससे लाभ के बजाय हानि ही अधिक है । बंदर के हाथ में यदि तलवार दे दी जाए तो वह अपनी रक्षा के बदले अपनी हानि ही अधिक करेगा। धन, बल, विद्या, सुकुल, सुजाति, अधिकार, चातुर्य आदि सम्पदाएँ प्रचुर मात्रा में उपाजित कर लेने पर भी यदि उनका उपयोग आर्थिक दृष्टि से करना न आया तो उनसे लाभ के बदले हानि ही अधिक हो सकती है। सुसम्पन्न लोग जब अदूरदर्शी और अविवेकी बनकर कुमार्गगामी बनते और अनर्थ पर उतरते हैं तो अपनी या अपनों को ही नहीं, पूरे समाज की भयंकर क्षति करते हैं। अतएव भौतिक स्तर को ऊँचा उठाने की अपेक्षा, मनुष्य का आन्तरिक स्तर उठाया जाना सर्वप्रथम आवश्यक है । आर्थिक, वैज्ञानिक, शारीरिक, बौद्धिक आदि भौतिक क्षेत्रों में विकास के लिए जितने प्रयत्न किये जाते हैं, उससे अधिक नहीं तो कम से कम समकक्ष प्रयत्न तो आध्यात्मिक क्षेत्र में विकास के लिए किया ही जाना चाहिए।
आत्मिक विकास मनुष्य-जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसी आधार पर गई-गुजरी एवं बौद्धिक दृष्टि से पिछड़ी हुई स्थिति में पड़े हुए व्यकियों को महात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के स्तर तक विकसित होने का अवसर मिला है, मिलता है, और मिल सकता है। हरिकेशबल मुनि जाति, कुल से, शरीर सम्पदा से या बौद्धिक दृष्टि से हीनतर थे, किन्तु जब उन्होंने तप-त्याग-संयम एवं नियम को अपना कर अपनी आत्मा को आध्या.
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