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________________ ६४ तमसो मा ज्योतिर्गमय . दायिक एवं जातीय उन्नति होने के साथ-साथ मनुष्य की आत्मिक प्रगति ठप्प हो जाने से मनुष्य मानव से दानव और देव बनने के बदले राक्षस बनता जा रहा है । भौतिक उन्नति के साथ आध्यात्मिक उन्नति का सन्तुलन न होने अथवा भौतिक विकास पर आध्यात्मिकता एवं नैतिकता का अंकूश न रहने से मनष्य विनाश के कगार पर जा खड़ा हुआ है। ऐसे अनैतिक, अधार्मिक एवं भौतिकता परायण मानव बर्बादी के नये दौर से गुजर रहे हैं । थोड़े से देशों या व्यक्तियों के भौतिक दृष्टि से समृद्ध बन जाने पर भी उनमें आत्मिक दृष्टि से असमृद्धता के कारण उत्पन्न हुई इन बुराइयों की बाढ़ हम देख रहे हैं। अमेरीका की जनसंख्या संसार भर की जनसंख्या में सिर्फ १४ प्रतिशत है, वह आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने पर भी सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है। आर्थिक समृद्धि के साथ अमेरीकन जनता की आवश्यकताएँ दिनानुदिन बढ़ती जा रही हैं । दूसरी ओर उनकी आत्मा में असन्तोष, ईर्ष्या, स्वार्थपरता, अहंकार, काम, क्रोध, मोह, रागद्वेष आदि दुर्गुण भी पनपते जा रहे हैं । फलतः प्रगति तो हुई, परन्तु हई भौतिक दिशा में ही। इसे हम प्रगति के नाम पर अवगति. उत्थान के बदले पतन, अभ्युदय के बदले कर्मोदय और विकास के बदले ह्रास कह सकते हैं । वैज्ञानिक उपलब्धियों के बावजूद आवश्यकताएँ अमेरीका आदि देशों में अत्यधिक बढ़ी हुई हैं, जो बर्बादी का कारण हैं। अमेरीका आदि देशों में जीवन का स्तर ऊँचा उठाने का अर्थ समझा जाता है भौतिक समृद्धि । फिर ऐसे देश अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति दो तरह से करने का प्रयत्न करते हैं-समर्थ राष्ट्र द्वारा असमर्थ राष्ट्रों का शोषण-उत्पीड़न करना अथवा अगली पीढ़ी के लिए आवश्यक साधनों को वर्तमान पीढ़ी द्वारा ही निचोड़ कर समाप्त कर दिया जाना, अगली पीढ़ी के लोगों के लिए जीने के साधन शेष न रहने देना । जिस प्रकार मारपीट करके भी गाय से सीमित मात्रा में ही दूध लिया जा सकता है, अथवा पेट चीरने पर भी मुर्गी से बहुत अंडे नहीं प्राप्त किये जा सकते, उसी प्रकार जीने के उन साधनों का दोहन उतना ही हो सकता है, जितना प्रकृति में सामर्थ्य है। पिछले पचास वर्षों में विश्व की आबादी दुगुनी हो गई है। परन्तु इसके बावजूद जनता में नैतिकता, मानवता एवं आध्यात्मिकता का स्तर बढ़ा नहीं, घटा है। उनकी भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा, आरोग्य, न्याय और सुरक्षा की व्यवस्था का खर्च बहुत बढ़ गया है। और तो और इंधन का खर्च ग्यारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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