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आध्यात्मिक प्रगति के मूलाधार ६३ न कोई बाधक तत्त्व अवश्य होना चाहिए, जो जिस क्षेत्र में वास्तबिक प्रगति होनी चाहिए, उस क्षेत्र में प्रगति न होने देता हो। प्रगति भौतिक नहीं, आत्मिक होनी चाहिए
प्रगति की पुकार सवत्र है। प्रगति की आकांक्षा सर्वत्र जोर-शोर से उभर रही है और उसके लिए अभीष्ट प्रयत्न भो द्रुतगति से हो रहे हैं । आर्थिक दृष्टि से लोग पहले की अपेक्षा अधिक सम्पन्न हुए हैं। राजनैतिक दृष्टि से प्रायः सभी राष्ट्रों में स्वतन्त्रता का बिगुल बज उठा है । अब दूसरों के गुलाम कहे जा सकने वाले देश भी बहुत थोड़े रह गए हैं । परन्तु नये ढंग की (शारीरिक-मानसिक) गुलामी मानव जाति को पुनः जकड़ने लगी है । विलासिता और कदाचार की आदतों, संकीर्ण स्वार्थपरता और अहम्मन्यता ने मनुष्य को भौतिक प्रगति के साथ-साथ आत्मिक अवनति के पथ पर ला पटका है। उचित-अनुचित हिताहित, कर्तव्य-अकर्तव्य, आत्मिक हानि-लाभ की मानवीय विवेक-बुद्धि भौतिक प्रगति के साथ-साथ कुण्ठित हो चली है । सामाजिक प्रगति के नाम पर कुछ जातियों, व्यावसायिक संगठनों, यूनियनों, श्रमिक दलों आदि के द्वारा अपना-अपना संगठन बना कर अपनी अनुचित माँगें पूरी कराने के लिए हिंसक आन्दोलन, घेराव, पथराव, तोड़फोड़, आगजनी, दंगा-फसाद, सिरफुटीव्वल आदि का दौरदौरा चलाया जाता है । समाज में प्रायः समाजनिष्ठा, मानवता, सहानुभति, सच्चरित्रता, नैतिकता, व्यसनत्याग, आत्मा-परमात्मा (देव) महात्मा (गुरु) और धर्म-संघ के प्रति आस्था-श्रद्धा समाप्त हो चली है । सामाजिक प्रगति के पंख कट गये हैं । समाज में एक ओर कुछ लोगों में अहम्मन्यता पनप रही है तो दूसरी ओर आत्महीनता एव निराशा अपने पैर पसारने लगी है । समाजनेताओं और राजनेताओं में आत्मिक प्रगति प्रायः नहीं है, उसका कारण भी यही है कि उनमें दूरदर्शिता, विवेकशीलता, उदारता, आत्मसंयम, त्याग-तप की तेजस्विता क्षीण हो गई है। यही कारण है कि आम जनता में तप, त्याग, आत्मकल्याण की आकांक्षा, आत्मसंयम, विवेक, ईमानदारी, उदारता, मानवता, शिष्टाचार एवं परस्पर स्नेह-सद्भाव धीरेधीरे विदा हो रहे हैं । परिश्रमवृत्ति, नैतिक श्रमनिष्ठा एवं त्याग-तप-निष्ठा के अभाव के कारण गरीबों में उक्त सद्गुण लुप्त हो रहे हैं, जबकि अमीरों में अमीरी के कारण उद्धतता, विलासिता, यौन स्वेच्छाचार, शराब, जुआ, व्यभिचार, दहेज कम लाने पर नववधू पर अत्याचार, आत्महत्या आदि अपराध भी धड़ल्ले के साथ बढ़ते जा रहे हैं। आर्थिक एवं बौद्धिक साम्प्र
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